कार्तिक पूर्णिमा Vrat-katha Kartik Purnima
कार्तिक पूर्णिमा को कई जगह देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। साल में कार्तिक पूर्णिमा 14 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन व्रत रखना बेहद शुभ और पुण्य का काम माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा (Kartik Poornima) के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का अंत किया था। इस दिन से जुड़ी एक कथा निम्न है: 

एक बार की बात है त्रिपुर नामक राक्षस ने कठोर तपस्या की। त्रिपुर की इस घोर तपस्या के प्रभाव से सभी जड़-चेतन, जीव-जन्तु तथा देवता भयभीत होने लगे। तब देवताओं ने त्रिपुर की तपस्या को भंग करने के लिए खूबसूरत अप्सराएं भेजीं। 

परंतु त्रक्षिपुर की कठोर तपस्या में वह बाधा डालने में सफल न पाईं। अंत में ब्रह्मा जी स्वयं उसके सामने प्रकट हुए तथा उससे वर मांगने के लिए कहा।

तब त्रिपुर ने ब्रह्मा जी से वर मांगते हुए कहा 'न मैं देवताओं के हाथ से मरु, न मनुष्यों के हाथ से।' वरदान मिलते ही त्रिपुर निडर होकर लोगों पर अत्याचार करने लगा। जब उसका इन बातों से भी मन न भरा तो, उसने कैलाश पर्वत पर ही चढ़ाई कर दी। इसके परिणाम स्वरूप भगवान शिव और त्रिपुर के बीच घमासान युद्ध होने लगा। 
काफी समय तक युद्ध चलने के बाद अंत में भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु की सहायता से उसका वध कर दिया। इस दिन से ही क्षीरसागर दान का अनंत माहात्म्य माना जाता है। 
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि इस दिन दान का फल दोगुना या इससे अधिक भी मिलता है। कार्तिक पूर्णिमा का दिन सिख धर्म के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था।