अपने बॉर्डर की हिफाजत रोबोट से करता है इजरायल, यहां घुसपैठ नामुमकिन
इजरायल अपनी सीमा की हिफाजत में नई टेक्नोलॉजी यूज करता है । मिस्र से लगी सीमा पर उसने रोबोट लगा रखे हैं । जिसमें कैमरा और सेंसर्स लगे हैं । इसे कंट्रोल रूम से जोड़ा गया है । हरकत होते ही ये पिक्चर कंट्रोल रूम को भेज देते हैं । इस तरह की निगरानी में सेना के जवानों को सहूलियत होती है । भारत भी इस तकनीक का इस्तेमाल LOC पर कर सकता है ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (मंगलवार, 4 जुलाई) अपनी इजरायल यात्रा के लिए रवाना हो चुके हैं। विदेश यात्रा से दोनों मुल्कों के बीच राजनयिक संबंध मजबूत होने की उम्मीद है। इजरायल अपने कारगर डिफेंस सिस्टम के लिए दुनियाभर में मशहूर है। मिसाइलों से लेकर छोटी बंदूकों तक, हर किस्म के उम्दा हथियार बनाने के लिए इजरायल को दुनियाभर में जाना जाता है। वहीं पीएम मोदी की इजरायल यात्रा के चलते, वहां के डिफेंस सिस्टम की बेहतरीन इजात में से एक “बॉर्डर सिक्योरिटी रोबोट गार्ड” भारत में भी सुर्खियों में है। इजरायल अपनी सीमा पर जवानों के बजाए रोबोट गार्ड्स की तैनाती करता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि इसे मात देना नामुमकिन हैं। आइए जानते हैं इसकी खासियतों के बारे में।
क्या है इजरायल का रोबोट गार्ड सिस्टम
क्या है इजरायल का रोबोट गार्ड सिस्टम
इजरायल ने अपनी सीमा पर जवानों के बजाए रोबोट गार्ड्स को तैनात कर रखा है। सीमा सुरक्षा के लिए यह रोबोट गार्ड काफी कारगर माने जाते हैं। रोबोट बिना थके लंबे समय तक का सीमा की निगरानी कर सकते हैं। खबरों के मुताबिक, इजरायल के इन रोबोट गार्ड्स में कई खास फीचर्स हैं। यह इफ्रारेड सेंसरों और कैमरों से लैस होते हैं जो किसी भी तरह की हरकत को भांप लेते हैं। इनकी मदद से जवान आसानी से सीमा के किसी भी हिस्से पर हो रही घुसपैठ को नाकाम कर सकते हैं।
रोबोट गार्ड के जरिए जवान कंट्रोल रूम से बैठ कर ही सीमा की सुरक्षा का काम कर सकते हैं। रोबोट एक पाइप के जरिए चलते हुए सीमा की निगरानी करता है। वहीं अगर कंट्रोल रूम में जवनों से कोई चूक होती है तो रोबोट गार्ड अपने सेंसरों के जरिए अपने आस-पास हुई किसी भी हरकत को पकड़ लेता है। रोबोट गार्ड में अपने 15 मीटर के दायरे में हुई कोई भी हरकत पकड़ने की क्षमता है जिसके जरिए वह कंट्रोल रूम तक चेतावनी पहुंचाता है और जिसके बाद जवान अपनी कार्रवाई को अंजाम दे सकते हैं।
अमेरिकी खुफिया एजेंसी भी है मोसाद की दीवानी, जानें इजरायल की 10 खास बातें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल से दोस्ती बढ़ाने के लिए वहां रवाना हो गए हैं. ऐसा करने वाले वे पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं. यहूदी धर्म को मानने वाला एकमात्र देश इजरायल कई मायनों में दुनिया से अलग है. चारों ओर से दुश्मनों से घिरे रहने के बावजूद इस देश की ताकत को दुनिया देख चुकी है. इजरायल से जुड़ी कुछ खास बातें यहां पढ़ें...
1. 1947 में आजादी के समय यूएन ने इजरायल को 5,500 sq. miles जमीन दी थी. लेकिन अब यह बढ़कर 8,000 sq. miles हो गई है. पड़ोसियों पर हमले कर इजरायल ने जीत के जमीन पर कब्जा कर लिया था.
2. इजरायल हाई टेक स्टार्ट अप का केंद्र बिंदु है. इसे अमेरिका के सिलिकॉन वैली के तर्ज पर अरबी में सिलिकॉन वादी भी कहा जाता है.
3. दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में शुमार बिल गेट्स और वॉरेन बफेट जैसे लोगों ने इजरायल की अर्थव्यवस्था को सराहा और उसमें निवेश भी किया है. वॉरेन बफेट कहते हैं- इजरायल, यूएस के बाहर निवेश के लिए सबसे अच्छा हब है.
4. दुनिया भर के हीरा तराशने और पॉलिश करने की सबसे बड़ी इंडस्ट्रीज में से एक इजरायल में है.
5. दुनिया के सबसे बड़े हथियार उत्पादकों में से एक इजरायल. यूएस और यूरोपीय देश हैं सबसे बड़ा खरीदार.
6. दुनियाभर के 60% ड्रोन इजरायल में बनते हैं. यूएस हथियार बनाने में इजरायल की सहायता करता है. लगभग 3 अरब डॉलर की राशि हर वर्ष यूएस देता है.
7. इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद, दुनिया का सबसे ताकतवर खुफिया एजेंसी है. अमेरिका भी इसके काम करने के तरीके का दीवाना है.
8. इजरायल एक बहुत अच्छा पर्यटक स्थल भी है. सलाना लगभग 30 लाख लोग यहां आते हैं. जो कि इजरायल के आय के मुख्य स्त्रोत हैं.
9. इजरायल का महज 20% हिस्सा ही खेती के लायक है. फिर भी वो अपने जरूरत का 95 प्रतिशत खाना उपजा लेता है.
10. वर्ल्ड बैंक के अनुसार इजरायल का GDP लगभग 320 डॉलर का है, यह दुनिया में 33वां स्थान पर है.
अपने दुश्मनों के साथ क्या करता है इजरायल, पढ़िए 1972 का ये मामला
1972 में ओलंपिक खेलों का आयोजन जर्मनी के म्यूनिख शहर में हुआ था. दुनियाभर के तमाम देशों के खिलाड़ी इसमें हिस्सा लेने आए थे. खेल शुरू हुए एक हफ्ते से ज्यादा वक्त बीत चुका था. कोई नहीं जानता था कि आने वाले दिनों में ओलंपिक गेम्स विलेज में कुछ ऐसा होने वाला है, जो खेलों के इतिहास का सबसे काला अध्याय बन जाएगा.
कनाडा के खिलाड़ियों ने अनजाने में की आतंकियों की मदद
तारीख थी 5 सितंबर 1972. खिलाड़ियों की तरह ट्रैक सूट पहने 8 अजनबी लोहे की दीवार फांदकर ओलंपिक विलेज में घुसने की कोशिश कर रहे थे. तभी वहां कनाडा के कुछ खिलाड़ी पहुंच गए. दीवार फांदने वाले अजनबी सहम गए, कनाडा के खिलाड़ियों ने उन्हें किसी दूसरे देश का खिलाड़ी समझा और फिर दीवार फांदने में उनकी मदद की. लोहे की दीवार पार करने के बाद कनाडा के खिलाड़ी अपने रास्ते पर आगे बढ़ गए. दूसरी तरफ ट्रैक सूट पहने अजनबी उस इमारत के बाहर पहुंच गए जहां इजरायली खिलाड़ियों को ठहराया गया था. इस इमारत में दाखिल होते ही इन अजनबियों का असली चेहरा सामने आ गया. ये कोई खिलाड़ी नहीं बल्कि हथियारों से लैस आतंकी थे.
ये पीएलओ यानी फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन से जुड़े थे. आठों आतंकी हाथों में हथियार लेकर अपने मिशन को अंजाम देने निकल पड़े. सबसे पहले उन्होंने जिस अपार्टमेंट में दाखिल होने की कोशिश की, उसमें रह रहे पहलवान योसेफ गटफ्रंड अभी जाग रहे थे, शोर सुनकर वो दरवाजे तक पहुंचे लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.
खूब लड़े खिलाड़ी
गटफ्रंड ने शोर मचाकर अपने बाकी साथियों को खबरदार कर दिया. पूरे हॉस्टल में हड़ंकप मच गया, कुछ खिलाड़ी भागने की कोशिश करने लगे, लेकिन रेसलिंग कोच मोसे वेनबर्ग दौड़कर किचन में घुसे और मुकाबला करने के लिए चाकू उठा लिया. अगले ही पल एक आतंकी की बंदूक गरजी और गोली मोसे के गालों को छेदती हुई निकल गई. इसके बाद आतंकियों ने हॉस्टल के एक-एक कमरे की तलाशी ली और खिलाड़ियों को बंधक बना लिया. गोलीबारी के बीच कुछ खुशकिस्मत खिलाड़ी भागने में कामयाब रहे. लेकिन कुछ ऐसे बदकिस्मत भी थे, जिन्होंने पूरी हिम्मत जुटाकर आतंकियों का मुकाबला किया. वो अपने साथियों को बचाने के लिए दुश्मनों से भिड़ गए, लेकिन आतंकियों ने उन्हें गोली मारने में देर नहीं लगाई.
क्या थी आतंकियों की मांग
अगले दिन ये खबर सनसनी बनकर पूरी दुनिया में फैल गई कि फलस्तीनी आतंकवादियों ने जर्मनी के म्यूनिख शहर में 11 इजरायली खिलाड़ियों को बंधक बना लिया है. अब तक बाहर वालों को ये पता नहीं था कि दो खिलाड़ी पहले ही मारे जा चुके हैं. आतंकियों ने मांग रखी कि इजरायल की जेलों में बंद 234 फलस्तीनियों को रिहा किया जाए, लेकिन इजरायल ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि आतंकियों की कोई मांग नहीं मानी जाएगी. इसके बाद आतंकियों ने दो खिलाड़ियों के शवों को हॉस्टल के दरवाजे से बाहर फेंक दिया, वो ये संदेश देना चाहते थे कि यही हाल बाकी खिलाड़ियों का भी होगा लेकिन इजरायल का इरादा नहीं बदला.
इजरायल की प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर के सख्त तेवर देखकर दुनिया दंग थी. लोगों को लग रहा था कि इजरायल ने अपने खिलाड़ियों को आतंकियों के भरोसे छोड़ दिया है. लेकिन हकीकत ये है कि इजरायल जर्मनी को इस बात के लिए राजी करने में जुटा था कि वो म्यूनिख में अपने स्पेशल फोर्सेस भेज सके, लेकिन जर्मनी इसके लिए तैयार नहीं हुआ.
ओलंपिक खेलों के दौरान खिलाड़ियों को बंधक बनाना और मोलभाव करना. पूरी दुनिया टकटकी लगाकर इजरायल की ओर देख रही थी. लोग सांसें थामे इंतजार कर रहे थे कि आखिर इजरायली खिलाड़ियों का क्या होगा. इसी बीच आतंकियों ने एक नई मांग रखी और जर्मन सरकार ने वो मांग मान भी ली. आतंकियों ने मांग रखी कि उन्हें यहां से निकलने दिया जाए, वो बंधक इजरायली खिलाड़ियों को अपने साथ ले जाना चाहते थे. जर्मन सरकार की रणनीति थी कि इसी बहाने आतंकी और खिलाड़ी बाहर निकलेंगे और एयरपोर्ट पर आतंकियों को निशाना बनाना आसान होगा. प्लान के मुताबिक आतंकियों को बस मुहैया कराई गई, जो उन्हें एयरपोर्ट तक ले गई. एयरपोर्ट पर अंधेरे में जगह-जगह शार्प शूटर तैनात कर दिए गए थे.
इजरायल के खिलाड़ियों ने गंवाई जान
पूरी दुनिया अपने टीवी स्क्रीन पर इस मंजर को लाइव देख रही थी. खिलाड़ियों को बस से उतारकर हेलीकॉप्टर में बिठाया गया. इसके कुछ ही सेकेंड बाद शार्प शूटरों ने आतंकियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. खुद को चारों तरफ से घिरता देख आतंकियों ने निहत्थे खिलाड़ियों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. एक हेलीकॉप्टर को बम से उड़ा दिया गया. फिर दूसरे हेलीकॉप्टर में बैठे खिलाड़ियों को भी गोलियों से भून दिया गया. कुछ ही मिनटों में एयरबेस पर मौजूद हर आतंकी मारा गया. साथ ही इजरायल के 9 खिलाड़ी भी आतंकियों की गोलियों के शिकार बन गए. शुरू में टीवी के जरिए ये खबर फैलाई गई कि सिर्फ आतंकी मारे गए हैं, सभी 9 खिलाड़ी सुरक्षित हैं लेकिन अगली सुबह ये साफ हो गया कि इजरायल का कोई भी खिलाड़ी जिंदा नहीं बचा है.
फलस्तीनी आतंकवादियों ने इजरायल के 11 खिलाड़ियों को म्यूनिख ओलंपिक में बंधक बनाया और उन्हें मार दिया. इस खौफनाक मिशन को अंजाम देने वाले 8 आतंकी भी मारे गए, लेकिन इजरायल इतने भर से शांत बैठने वाला नहीं था. उसने अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद की मदद से उन सभी लोगों के कत्ल की योजना बनाई, जिनका वास्ता ऑपरेशन ब्लैक सेंप्टेंबर से था. इस मिशन को नाम दिया गया 'रैथ ऑफ गॉड' यानी ईश्वर का कहर.
नरसंहार के बाद ही दिया करारा जवाब
म्यूनिख नरसंहार के दो दिन के बाद इजरायली सेना ने सीरिया और लेबनान में मौजूद फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन के 10 ठिकानों पर बमबारी की और करीब 200 आतंकियों और आम नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया. लेकिन इजरायली प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर इतने भर से रुकने वाली नहीं थीं. उन्होंने इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के साथ गुप्त मीटिंग की और उनसे एक ऐसा मिशन चलाने को कहा जिसके तहत दुनिया के अलग-अलग देशों में फैले उन सभी लोगों के कत्ल का निर्देश दिया, जिनका वास्ता ब्लैक सेप्टेंबर से था.
सबसे पहले मोसाद ने ऐसे लोगों की लिस्ट बनाई, जिनका संबंध म्यूनिख नरसंहार से था. इसके बाद मोसाद के ऐसे एजेंट्स तलाशे गए जो गुमनाम रह कर ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड को अंजाम देने के लिए तैयार थे. इन एजेंट्स से कहा गया कि उन्हें सालों तक अपने परिवार से दूर रहना होगा. वो अपने मिशन के बारे में परिवार को भी नहीं बता सकते और सबसे बड़ी बात ये कि पकड़े जाने पर इजरायल उन्हें पहचानने से इनकार कर देगा. यानी बिना किसी पहचान, बिना किसी मदद के उन्हें इस मिशन को अंजाम देना था.
मोसाद की कार्रवाई शुरू
मिशन शुरू होने के कुछ ही महीनों के अंदर मोसाद एजेंट्स ने वेल ज्वेटर और महमूद हमशारी का कत्ल कर सनसनी मचा दी. अब बारी थी अगले निशाने की. यहां भी मोसाद की टीम ने ब्लैक सेप्टेंबर से संबंध रखने के शक में एक शख्स की दिन-रात निगरानी शुरू की. हुसैन अल बशीर नाम का ये शख्स होटल में रहता था और होटल में वो सिर्फ रात को आता था और दिन शुरू होते ही निकल जाता था. मोसाद की टीम ने उसे खत्म करने के लिए उसके बिस्तर में बम लगाने का प्लान बनाया.
बम लगाना कोई मुश्किल काम नहीं था, ये काम तो आसानी से हो गया. मुश्किल ये था कि कैसे ये पता किया जाए कि हुसैन अल बशीर बिस्तर पर है तभी धमाका किया जा सकता है. इसके लिए एक मोसाद एजेंट ने बशीर के ठीक बगल वाला कमरा किराए पर ले लिया. वहां की बालकनी से बशीर के कमरे में देखा जा सकता था. रात को जैसे ही बशीर बिस्तर पर सोने के लिए गया. एक धमाके के साथ उसका पूरा कमरा उड़ गया. इजरायल का मानना था कि वो साइप्रस में ब्लैक सेप्टेंबर का प्रमुख था, हालांकि उसकी हत्या के पीछे रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी से उसकी नजदीकियां अहम मानी गईं.
फलस्तीनी आतंकियों को हथियार मुहैया कराने के शक में बेरूत के प्रोफेसर बासिल अल कुबैसी को गोली मार दी गई. मोसाद के दो एजेंट्स ने उसे 12 गोलियां मारीं. मोसाद की लिस्ट में शामिल तीन टार्गेट लेबनान में भारी सुरक्षा के बीच रह रहे थे और अभी तक के हत्याओं के तरीकों से उन तक पहुंचना नामुमकिन था. इसलिए उनके लिए विशेष ऑपरेशन शुरू किया गया, जिसका नाम था ऑपरेशन स्प्रिंग ऑफ यूथ. ये ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड का ही एक हिस्सा था.
9 अप्रैल 1973 को इजरायल के कुछ कमांडो लेबनान के समुद्री किनारे पर स्पीडबोट के जरिए पहुंचे. इन कमांडोज को मोसाद एजेंट्स ने कार से टार्गेट के करीब पहुंचाया. कमांडो आम लोगों की पोशाक में थे, और कुछ ने महिलाओं के कपड़े पहन रखे थे. पूरी तैयारी के साथ इजरायली कमांडोज की टीम ने इमारत पर हमला किया. इस ऑपरेशन के दौरान लेबनान के दो पुलिस अफसर, एक इटैलियन नागरिक भी मारे गए. वहीं इजरायल का एक कमांडो घायल हो गया. इस ऑपरेशन के फौरन बाद तीन हमले और किए गए. इनमें साइप्रस में जाइद मुचासी को एथेंस के एक होटल रूम में बम से उड़ा दिया गया. वहीं ब्लैक सेप्टेंबर के दो किशोर सदस्य अब्देल हमीन शिबी और अब्देल हादी नाका रोम में कार धमाके में घायल हो गए.
मोसाद के एजेंट्स दुनिया में घूम-घूम म्यूनिख कत्ल-ए-आम के गुनहगारों को मौत बांट रहे थे लेकिन क्या इजरायल के बदले की कहानी थम गई. इंतकाम की आग में धधक रहे इजरायल की सीक्रेट सर्विस एजेंसी मोसाद का खूनी खेल अभी थमा नहीं था क्योंकि उसकी हिट लिस्ट में और लोगों के नाम शुमार थे और जब तक इस हिटलिस्ट से सभी नाम मिटा नहीं दिए जाते तब तक उसके एजेंट्स का मिशन खत्म नहीं हो सकता था लिहाज़ा मोसाद के एजेंट्स एक बार फिर अपने मिशन को अंजाम तक पहुंचाने में जुट गए. अब बारी थी उन लोगों को उनके अंजाम तक पहुंचाने की जो सीधे तौर पर म्यूनिख कत्ल-ए-आम से जुड़े थे और एक बार फिर शुरू हुआ मोसाद का खूनी इंतकाम और अपने इस मिशन के तहत...
-28 जून 1973 को ब्लैक सेप्टेंबर से जुड़े मोहम्मद बउदिया को उसकी कार की सीट में बम लगाकर उड़ा दिया.
-15 दिसंबर 1979 को दो फलस्तीनी अली सलेम अहमद और इब्राहिम अब्दुल अजीज की साइप्रस में हत्या हो गई.
-17 जून 1982 को पीएलओ के दो वरिष्ठ सदस्यों को इटली में अलग-अलग हमलों में मार दिया गया.
-23 जुलाई 1982 को पेरिस में पीएलओ के दफ्तर में उप निदेशक फदल दानी को कार बम से उड़ा दिया गया.
-21 अगस्त 1983 को पीएलओ का सदस्य ममून मेराइश एथेंस में मार दिया गया.
-10 जून 1986 को ग्रीस की राजधानी एथेंस में पीएलओ के डीएफएलपी गुट का महासचिव खालिद अहमद नजल मारा गया.
-21 अक्टूबर 1986 को पीएलओ के सदस्य मुंजर अबु गजाला को काम बम से उड़ा दिया गया.
-14 फरवरी 1988 को साइप्रस के लीमासोल में कार में धमाका कर फलस्तीन के दो नागरिकों को मार दिया गया.
इन आंकड़ों को देखने के बाद ये तो साफ हो जाता है कि मोसाद के एजेंट्स दुनिया के अलग-अलग देशों में जाकर करीब 20 साल तक हत्याओं को अंजाम देते रहे. जब इजरायल का ये चेहरा दुनिया के सामने आया तो उसकी काफी आलोचना हुई.
अगला नंबर आया मास्टरमाइंड का
अगला नंबर था अली हसन सालामेह का, वो शख्स जो म्यूनिख कत्ल-ए-आम का मास्टरमाइंड था और जिसने इजरायली एथलीटों को बंधक बनाने का ब्लूप्रिंट तैयार किया था. मोसाद ने सलामेह को एक कोड नाम दिया था, रेड प्रिंस. मोसाद के जासूस अली की तलाश पूरी दुनिया में कर रहे थे लेकिन ये बात सलामेह भी जानता था और इसीलिए उसने अपने इर्द-गिर्द सुरक्षा का घेरा बढ़ा दिया था. नार्वे में साल 1973 और स्विट्जरलैंड में साल 1974 में मोसाद ने सलामेह को जान से मारने की कोशिश की लेकिन वो अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाई. इसके बाद साल 1974 में स्पेन में एक बार फिर सलामेह की हत्या की कोशिश की गई लेकिन वो फिर बच निकला.
साल 1979 यानि पांच साल बाद मोसाद ने एक बार फिर सलामेह को लेबनान की राजधानी बेरूत में ढूंढ़ निकाला. 22 जनवरी 1979 को एक कार बम धमाका कर सलामेह को भी मौत के घाट उतार दिया गया. म्यूनिख कत्ल-ए-आम का गुनहगार मारा जा चुका था लेकिन म्यूनिख क़त्ल-ए-आम के 7 साल बाद तक चले मोसाद के ऑपरेशन में उसके एजेंट्स ने 11 में से 9 फलस्तीनियों को मौत के घाट उतार दिया था. वैसे ये भी एक सच है कि करीब 20 साल तक चले इस सीक्रेट ऑपरेशन में मोसाद ने कुल 35 फलस्तीनियों को मारा था.