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*गुरुसत्संग शब्द*🌷
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गुरुसत्संग शब्द : करूँ भेद निज घर का पूरा बयान - Karoon Bhed Nij Ghar ka Poora Bayaan : GuruSatsang Shabd |
करूँ भेद निज घर का पूरा बयान ।
यही राधास्वामी मत है अन्दर जहान (1)
सुरत शब्द जुगति से जाना है पार ।
तभी होगा सबका ही उद्धार (2)
मगर संग सतगुरू का करना जरूर ।
बिना संग कारज न होवेगा पूर (3)
भरम और संशय है मन में भरे ।
बिना सतगुरू के यह नाहिं टरे (4)
कर्म और धर्म के लगे हैं भर्म ।
सही राह को गहने में करते शर्म (5)
पुरानी राहों में रहे सब अटक ।
तीर्थ और ब्रत में रहे हैं भटक (6)
समाध और गर्न्थो में हो रहे बेहाल ।
सही रास्ता रोक बैठा है काल (7)
बिना वक़्त सतगुरू चले नहीं चाल ।
इसी से हो रहे हैं सभी बेहाल (8)
सुरत अंश है तीसरे तिल में सार ।
सभी घट में चोटी पर स्वामी भण्डार (9)
नौ द्वारों का औघट है माया का कार ।
दसम दर से राह गई ब्रह्मण्ड के पार (10)
सत्तदेश बना स्वामी का दरबार ।
ब्रह्मण्ड में है काल की सरकार (11)
निरंजन ओम और ररंकार है नाम ।
सहँस दल त्रिकुटी और सुन्न है मुकाम (12)
बायें रचे काल ने है मुकाम ।
दहने रचाये हँ माया ने धाम (13)
चेतन धारा है मध्य की स्वामी नाम ।
उलट के लगे राधास्वामी है नाम (14)
जपना है सब को राधास्वामी नाम ।
नहीं और नामों के जापों का काम (15)
सतगुरू की सेवा उन्हीं का है ध्यान ।
नहीं चित में रखना है कोई आन (16)
सुरत चार जन्मों में सत्तलोक जाय ।
संग सतगुरू का भी मिलता भी जाय (17)
न छोड़े राधास्वामी गहलें जिन्हें ।
वे ले जाते सत्तलोक निश्चित उन्हें (18)
वे कर्मो को सबके हैं बदलाते जाय ।
नहीं पाप कर्मों की देते हैं राह (19)
बने तो कराते हैं सबका भला ।
भजन ध्यान से घट में देते चला (20)
घटाते हैं मन के सभी ही विकार ।
हटाते हैं जगत के मिथ्या विचार (21)
जब सतसंग त्राटक गूरू का करे ।
तभी चेतन औघट से घट में भरे (22)
जब सतगुरू की सेवा तन मन धन से करे ।
तभी जग के बन्धन से अन्तर टरे (23)
प्रीत और परतीत दिन दिन बढ़े ।
तभी रंग सतगुरू का इस पे चढ़े (24)
बिना उनके दिखे न कोई जहान ।
तभी उनका अन्तर में बन पाये ध्यान (25)
राधास्वामी नाम मन से सुमिरन करे ।
संसारी रागों को तभी परिहरे (26)
कोई दिन में ब्रह्मण्ड परवेश पाय ।
सुरत और मन अन्तर शब्दों समाय (27)
ब्रह्म पद में मन जावे समाय ।
सुरत चले सत्तदेश की ऒर धाय (28)
सत्तलोक सत्तपुरुष का दर्शन करे ।
सुरत अपने प्रीतम को जाके वरे (29)
सत्तपुरुष इजाजत ले ऊपर को जाय ।
अलख और अगम लोक पार कराय (30)
राधास्वामी धाम में जाकर समाय ।
राधास्वामी माता पिता मिल जाय (31)
आदि में थी सुरतें स्वामी में ।
अन्त में भी रहना स्वामी में (32)
सुरत धारा जब लग भटकेगी वार ।
कभी नहीं होना है सच्चा उद्धार (33)
जपो प्रीत से नित्त राधास्वामी नाम ।
तभी पावोगे एक दिन राधास्वामी धाम (34)
🌷 *GuruSatsang Shabd*🌷