हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व होता है. इस पर्व को देवउठनी एकादशी या देवुत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस बार देव उठनी एकादशी 19 नंवबर को है. मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीनों के लिए सोते हैं और कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं. इसी लिए तुलसी विवाह के बाद ही घरों में शुभ कामों खासकर शादियों की शुरुआत होती है.

तुलसी विवाह क्या होता है? क्या है शुभ मुहुर्त,जानें पूरी विधि

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देवउठनी एकादशी के बाद से ही घर में शुभ कामों की शुरुआत हो जाती है. इस दिन शालिग्राम से तुलसी का विवाह भी किया जाता है. इस विवाह में तुलसी दुल्हन और शालिग्राम दुल्हा बनते हैं. ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ करने जितना फल मिलता है.

तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि आरंभ: 19 नवंबर 2018 को दोपहर 2:29 बजे से
द्वादशी तिथि समाप्त: 20 नवंबर 2018 को दोपहर 2:40 बजे तक

मान्यता है कि इस दिन तुलसी विवाह से घर में सकारात्मक वातावरण बना रहता है और लोगों को कन्या दान का सुख मिलता हैहै. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिर जिस घर में बेटी ना हो वो तुलसी विवाह करें. कई जगह एकादशी को छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है.

तुलसी विवाह की पूरी विधि

परिवार के सभी सदस्य सुबह नहा-धोकर पूजा करें
कन्यादान लेने वाले व्यक्ति को इस दिन व्रत करना चाहिए
शुभ मुहूर्त के दौरान तुलसी को आंगन में रखकर पूजा अर्चना की तैयारी करें.
तुलसी के गमले में एक गन्ना गाड़ दें और लाल रंग की चुनरी से मंडप सजाएं
गमले में शालिग्राम पत्थर भी रखें. और हल्दी, दूध चढ़ाएं
आप मौसमी फल भी चढ़ा सकते हैं और पूजा की थाली तैयार करें
थाली में कपूर जलाकर तुलसी की 11 बार परिक्रमा करें

देव को जगाने का मंत्र

'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'

Tulsi Vivah 2018 : तुलसी विवाह से मिलता है कन्यादान के बराबर फल, ये है शुभ मुहूर्त और विवाह विधि
Tulsi Vivah 2018 Timings: तुलसी और शालीग्राम विवाग का आध्यात्मिक अर्थ है। मान्यताओं के अनुसार तुलसी जी की पूजा के बिना शालिग्राम जी की पूजा नहीं की जा सकती है। जानिए पूजा विधि और मुहूर्त...
ulsi Vivah 2018 Timings: दिवाली के बाद कार्तिक महीन की शुक्ल पक्ष में देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। इसी दिन तुलसी तथा शालिग्राम जी का विवाह करवाया जाता है। इस साल देवउठनी एकादशी और तुलसी विवाह 19 नवंबर के दिन है। आपको बता दें कि शालीग्राम विष्णु जी के प्रतिरूप हैं। वहीं, तुलसी विष्णु प्रिया हैं। 

देवउठनी के दिन मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा से जागते हैं। इसके अलावा इस दिन तुलसी और शालीग्राम विवाग का आध्यात्मिक अर्थ है। मान्यताओं के अनुसार तुलसी जी की पूजा के बिना शालिग्राम जी की पूजा नहीं की जा सकती है।

यह अनुष्ठान कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी से ही प्रारम्भ हो जाता है तथा तुलसी विवाह तक अखण्ड दीप जलता रहता है।  इस विवाह को करवाने से कई जन्मों के पापों को नष्ट करता है। इस दिन व्रत रखने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा इससे दांपत्य जीवन में प्रेम और अटूटता आती है।
लोग नहीं जानते हैं कि दोनों के विवाह का एक आध्‍यात्‍मित महत्‍व भी है जिसका अर्थ है कि तुलसी जी की पूजा के बिना शालिग्राम जी की पूजा नहीं की जा सकती है।

 कन्यादान के बराबर मिलता है फल 

ज्योतिषाचार्य सुजीत जी महाराज के अनुसार तुलसी विवाह करवाने वाले को कन्यादान के बराबर फल की प्राप्ति होती है।वहीं, जिनका दाम्पत्य जीवन बहुत अच्छा नहीं है वह लोग सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए तुलसी विवाह करवा सकते हैं।

युवा जो प्रेम में हैं लेकिन विवाह नहीं हो पा रहा है उन युवाओं को भी तुलसी विवाह करवाना चाहिए। तुलसी विवाह करवाने से कई जन्मों के पाप नष्ट होते हैं। तुलसी पूजा करवाने से घर में संपन्नता आती है तथा संतान योग्य होती है।

Tulsi Vivah 2018 Tulsi Vivah 2018  |  तस्वीर साभार: BCCL

Tulsi Vivah 2018 Timings: दिवाली के बाद कार्तिक महीन की शुक्ल पक्ष में देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। इसी दिन तुलसी तथा शालिग्राम जी का विवाह करवाया जाता है। इस साल देवउठनी एकादशी और तुलसी विवाह 19 नवंबर के दिन है। आपको बता दें कि शालीग्राम विष्णु जी के प्रतिरूप हैं। वहीं, तुलसी विष्णु प्रिया हैं। 

देवउठनी के दिन मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा से जागते हैं। इसके अलावा इस दिन तुलसी और शालीग्राम विवाग का आध्यात्मिक अर्थ है। मान्यताओं के अनुसार तुलसी जी की पूजा के बिना शालिग्राम जी की पूजा नहीं की जा सकती है।

यह अनुष्ठान कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी से ही प्रारम्भ हो जाता है तथा तुलसी विवाह तक अखण्ड दीप जलता रहता है।  इस विवाह को करवाने से कई जन्मों के पापों को नष्ट करता है। इस दिन व्रत रखने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा इससे दांपत्य जीवन में प्रेम और अटूटता आती है।
लोग नहीं जानते हैं कि दोनों के विवाह का एक आध्‍यात्‍मित महत्‍व भी है जिसका अर्थ है कि तुलसी जी की पूजा के बिना शालिग्राम जी की पूजा नहीं की जा सकती है।

 कन्यादान के बराबर मिलता है फल 

ज्योतिषाचार्य सुजीत जी महाराज के अनुसार तुलसी विवाह करवाने वाले को कन्यादान के बराबर फल की प्राप्ति होती है।वहीं, जिनका दाम्पत्य जीवन बहुत अच्छा नहीं है वह लोग सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए तुलसी विवाह करवा सकते हैं।

युवा जो प्रेम में हैं लेकिन विवाह नहीं हो पा रहा है उन युवाओं को भी तुलसी विवाह करवाना चाहिए। तुलसी विवाह करवाने से कई जन्मों के पाप नष्ट होते हैं। तुलसी पूजा करवाने से घर में संपन्नता आती है तथा संतान योग्य होती है।

तुलसी विवाह की विधि-

तुलसी जी को लाल चुनरी पहनाकर पूरे गमले को लाल मंडप से सजाया जाता है। शालिग्राम जी की काली मूर्ति ही होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो विष्णु जी की मूर्ति ले सकते हैं।

गणेश पूजन के बाद गाजे बाजे के साथ शालिग्राम जी की बारात उठती है। अब लोग नाचते गाते हुए तुलसी जी के सन्निकट जाते हैं। अब भगवान विष्णु जी का आवाहन करते हैं। भगवान विष्णु जी या शालिग्राम जी की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा कराते हैं। 

तुलसी जी के कराए जाते हैं सात फेरे 

तुलसी विवाह के दिन विष्णु जी को पीला वस्त्र धारण करवाकर दही, घी, शक्कर इनको अर्पित करते हैं। दूध व हल्दी का लेप लगाकर शालिग्राम व तुलसी जी को चढ़ाते हैं। मंडप पूजन होता है। विवाह के सभी रस्म निभाने के बाद शालिग्राम और तुलसी जी के सात फेरे भी कराए जाते हैं। 

कन्यादान करने वाले संकल्प लेकर इस महान पुण्य को प्राप्त करते हैं। इस प्रकार यह विवाह करवाने वाले को अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।

Tulsi Vivah 2018: क्यों तुलसी माता का विवाह एक पत्थर से कराया जाता है, जानिए पूरी कथा

Tulsi Vivah 2018: देव उठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह (Tulasi and Shaligram Vivah ) किया जाता है. इस विवाह में तुलसी दुल्हन और शालिग्राम दुल्हा बनते हैं.

शालीग्राम और तुलसी के विवाह की कथा (Tulsi and Shaligram Vivah Katha)

दरअसल शालीग्राम और कोई नहीं बल्कि स्वंय भगवान विष्णु (Lord Vishnu) हैं. पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान शिव के गणेश और कार्तिकेय के अलावा एक और पुत्र थे, जिनका नाम था जलंधर. जलंधर असुर प्रवत्ति का था. वह खुद को सभी देवताओं से ज्यादा शक्तिशाली समझता था और देवगणों को परेशान करता था.

जलंधर का विवाह भगवान विष्णु की परम भक्त वृंदा से हुआ. जलंधर का बार-बार देवताओं को परेशान करने की वजह से त्रिदेवों ने उसके वध की योजना बनाई. लेकिन वृंदा के सतीत्व के चलते कोई उसे मार नहीं पाता. 

इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवगण भगवान विष्णु के पास पहुंचे. भगवान विष्णु ने हल निकालते हुए सबसे पहले वृंदा के सतीत्व को भंग करने की योजना बनाई. ऐसा करने के लिए विष्णु जी ने जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया. इसके बाद त्रिदेव जलंधर को मारने में सफल हो गए. 

वृंदा इस छल के बारे में जानकर बेहद दुखी हुई और उसने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया. सभी देवताओं ने वृंदा से श्राप वापस लेने की विनती की, जिसे वृंदा ने माना और अपना श्राप वापस ले लिया. प्रायच्क्षित के लिए भगवान विष्णु ने खुद का एक पत्थर रूप प्रकट किया. इसी पत्थर को शालिग्राम नाम दिया गया. 

वृंदा अपने पति जलंधर के साथ सती हो गई और उसकी राख से तुलसी का पौधा निकला. इतना ही नहीं भगवान विष्णु ने अपना प्रायच्क्षित जारी रखते हुए तुलसी को सबसे ऊंचा स्थान दिया और कहा कि, मैं तुलसी के बिना भोजन नहीं करूंगा. 
इसके बाद सभी देवताओं ने वृंदा के सती होने का मान रखा और उसका विवाह शालिग्राम के कराया. जिस दिन तुलसी विवाह हुआ उस दिन देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) थी. इसीलिए हर साल देवउठनी के दिन ही तुलसी विवाह किया जाने लगा.

देवउठनी एकादशी 2018: आज है तुलसी विवाह, व्रत करने से मिलता है भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद

आज है देवउठनी ऐकादशी, भगवान विष्णु के निंद्रा से जागने का दिन। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना का बहुत महत्व है। इस एकादशी पर व्रत करने से बैकुंठ की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि आज के दिन भगवान विष्णु निंद्रा से जाग जाते हैं और मांगलिक कार्यों की शुरूआत होती है। सभी देवों ने भगवान विष्णु को चार मास की योग निद्रा से जगाने के लिए घंटा, शंख, मृदंग आदि की मांगलिक ध्वनि के साथ श्लोकों का उच्चारण किया था।

इस एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा से जन्म जन्मांतर के पाप समाप्त हो जाते हैं। व्रत करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर में समृद्धि आती है। भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के साथ इस दिन तुलसी जी का शालिग्राम से विवाह भी कराया जाता है।

होता है तुलसी विवाह

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह किया जाता है। इस दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से किया जाता है। अगर किसी व्यक्ति को कन्या नहीं है और वह जीवन में कन्या दान का सुख प्राप्त करना चाहता है तो वह तुलसी विवाह कर प्राप्त कर सकता है।

तुलसी पूजा से घर में संपन्नता आती है तथा संतान योग्य बनती है। इस दिन आंवला, सिंघाड़े का भोग लगाया जाता है।  विवाह के समय तुलसी के पौधे को आंगन, छत या पूजास्थल के बीचोंबीच रखें। तुलसी का मंडप सजाने के लिए गन्ने का प्रयोग करें। विवाह के रिवाज शुरू करने से पहले तुलसी के पौधे पर चुनरी जरूर चढ़ाएं। गमले में शालिग्राम रखकर चावल की जगह तिल चढ़ाएं। तुलसी और शालिग्राम पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं। अगर विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आपको आता है तो वह अवश्य बोलें।