रम्भा तृतीया व्रत Vrat-katha Rambha Tritiya Vrat
रम्भा तृतीया व्रत ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन रखा जाता है। इस दिन अप्सरा रम्भा की पूजा की जाती है। इसे रम्भा तीज भी कहा जाता है।

हिन्दू मान्यतानुसार सागर मंथन से उत्पन्न हुए 14 रत्नों में से एक रम्भा थीं। कहा जाता है कि रम्भा बेहद सुंदर थी। कई साधक् रम्भा के नाम से साधना कर सम्मोहनी शिक्षा प्राप्त करते हैं।
हिन्दू धर्म में रम्भा तृतीया का व्रत विवाहित स्त्रियां बड़े श्रद्धाभाव से रखते हैं। वर्ष में जून को रखा जाएगा।
रम्भा तृतीया व्रत का विधान (Rambha Tritiya Vrat Vidhi in Hindi)
रम्भा तृतीया के दिन विवाहित स्त्रियां गेहूं, अनाज और फूल से लक्ष्मी जी की पूजा करती हैं। इस दिन देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। इस दिन स्त्रियां चूड़ियों के जोड़े की भी पूजा करती हैं। जिसे अपसरा रम्भा और देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। कई जगह इस दिन माता सती की भी पूजा की जाती है।

रम्भा तृतीया व्रत का फल
हिन्दू पुराणों के अनुसार इस व्रत को रखने से स्त्रियां को सुहाग बना रहता है। अविवाहित स्त्रियां भी अच्छे वर की कामना से इस व्रत को रखती हैं। रम्भा तृतीया का व्रत शीघ्र फलदायी माना जाता है।