![भारत में यहां इस जगह पर समाई थी सीता ,जहां आज भी दिखता है ये अद्भुत चमत्कार mata sita भारत में यहां इस जगह पर समाई थी सीता ,जहां आज भी दिखता है ये अद्भुत चमत्कार mata sita](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhj2e0UPCvgeD8wd1NF3rBxt4ghzJfM5iuG8nxh7jj0mLMSccuFyvqVPPaYunP4GfTMF0Nk7YH4veOZm_IrDEL0AgkLbeuxxObuhEwd7j7Rc8FOem81m93xtEWVvRJ03oq9mhi6xQ5EgrM/s400/1500568594822-1.jpg)
कथा अनुसार भगवान श्रीराम को अयोध्या का राजपाठ मिलने की घोषणा हो चुकी थी और पूरे नगर में हर्षोल्लास का माहौल था। लेकिन भगवान राम की सौतेली माता कैकेयी ने उन्हें राजपाठ नहीं बल्कि चौदह वर्ष के वनवास के लिए भेज दिया। वनवास
श्रीराम के प्रिय भाई लक्ष्मण और उनकी पत्नी, माता सीता भी उनके साथ वनवास के लिए गईं।
जब वह वनवास के सिए गये थे इस दौरान उन्होनें कई लोगों का उद्धार किया और इसी यात्रा के दौरान भगवान राम द्वारा कई चमत्कार हुए, बहुत से लोगों की हर परेशानी में उनका साथ देकर उनकी मदद भी की ती हनुमान और उनकी वानर सेना से भी श्रीराम की मुलाकत इन्हें चौदहर वर्षों के दौरान ही हुई।
तभी इसी दौरान उनहोनें एक बहुत बड़ी पीड़ा भी सही थी क्योंकि लांका के रावण उनकी पत्नी सीता को कैद का अपहरण करने का दुस्साहस किया था, उसका वध भी इसी दौरान किया।
चौदह वर्ष श्रीराम के वनवास के बाद चौदह वर्ष धरती और अन्य लोगों के लिए तो वरदान साबित हुए, लेकिन माता सीता के लिए ये वर्ष अपने पति के इंतजार में बीते और इन्हीं वर्षों के चलते उन्हें हमेशा के लिए अपने पति का वियोग बर्दाश्त करना पड़ा।
वे पवित्रता की मूर्त थीं लेकिन फिर भी उनपर अंगुलियां उठीं।रावण की लंका माता सीता बहुत समय तक रावण की लंका में कैद रही थीं।वे अपने पति के सम्मान को बनाए रखना चाहती थीं और इसके लिए उन्होंने अपना सबकुछ छोड़ना भी ज्यादा नहीं समझा।
श्रीराम चाहते थे अयेध्या में उनका सम्मान उनकी प्रजा के बीच बना रहे इसके लिए उन्होंने अयोध्या का महल छोड़ दिया और वन में जाकर वाल्मिकी आश्राम में रहने लगीं। वे गर्भवती थीं और इसी अवस्था में उन्होंने अपना घर छोड़ा था। अश्वमेध यज्ञ कुछ सालों बाद श्रीराम ने एक अश्वमेध यज्ञ किया, इस यज्ञ के दौरान श्रीराम की मुलाकात अपने जुड़वा पुत्रों लव-कुश से हुआ।
जब वह पहली बार अपनी अपने बेटों से मिली तो वह उनको पहचान ना पाए.. दोनों में बहस होने के कारण युद्ध छिड़ गया औत तभी युद्ध की खबर मिलते ही माता सीता वहां पहुंचीं और उन्होंने अपने पुत्रों की पहचान उनके पिता से करवाई।
जब श्रीराम को पता चला कि वे लव-कुश उनके पुत्र हैं, तो वे उन्हें और सीता को लेकर महल वापस आ गए।
सीता को भी उनका अपने प्रति व्यवहार सही नहीं लगा।श्रीराम अपनी पत्नी सीता को लाने को लेकर आश्वस्त नहीं थे,भूमि देवी आहत होकर सीता ने भूमि देवी से प्रार्थना की कि वह उन्हें अपने भीतर समाहित कर लें।
तभी धरती मां ने उनकी प्रार्थना सुनी और उन्हें स्वीकार कर लिया। संत रविदास नगर जिस स्थान पर सीता ने भूमि में प्रवेश किया था आज उस स्थान को सीता समाहित स्थल के नाम से जाना जाता है, जो उत्तर प्रदेश के संत रविदास नगर में गंगा के किनारे स्थित है। शक्ति स्वरूपा इस मंदिर में आज भी शक्ति स्वरूपा माता सीता की अराधना की जाती है
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