![सावन की नागपंचमी पर करें ये पूजन, सात पीढिय़ों की रक्षा करेंगे नाग देवता Nagapanchami of Sawan सावन की नागपंचमी पर करें ये पूजन, सात पीढिय़ों की रक्षा करेंगे नाग देवता Nagapanchami of Sawan](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrZkDjBMckj7j0osq8sgsGtc0q4oO3g7vfNRNy_cZkGXa9pnOwUh4SrLtr3HTPe3gXUOJcrLGmXytu2ObVy2WDL5yA5Xazyi5J9EF2O6N4_81m_YCAQERasbtJ_ZX71-wkOVwuNrrlDhs/s320/5f415aaf53e81f68ef2aa9f0f0ec5f76.jpg)
सावन महीने की शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन नाग पंचमी मनाई जाती है। इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है। इस दिन सुहागन औरत व्रत भी रखती हैं। बंगाल और राजस्थान में कृष्ण पक्ष की पंचमीं यानि 14 जुलाई को और शुक्ल पक्ष की पंचमीं का व्रत 27 जुलाई को रखा जाता है।
‘ओम कुरुकुल्ये हुं पट स्वाहा’ मंत्र का जाप और नाग स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। नागों को भोजन कराने के उद्देश्य से ब्राह्मणों और सन्यासियों को भोजन करवाएं। मंदिर में जाकर दूध से नागदेवता को स्नान कराए तथा सांपों के बिल के बाहर उन्हें मीठा दूध पिलाने के लिए रखें। संभव हो तो सपेरों को सांप के लिए दूध तथा पैसे भी दें।
नाग पंचमी:कच्चे दूध से करें नाग देव की पूजा, पढ़ें रोचक कथाएं
गरुड़ पुराण के अनुसार व्रती अपने घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर गोबर से नागों के चित्र बनाए तथा आटे अथवा मिट्टी के सांप बनाकर उन्हें विभिन्न रंगों से सजाए। फूल और दूध से उनकी पूजा करें। पंचम तिथि का स्वामी नाग माना जाता है इसलिए धूप, दीप, कच्चा दूध, खीर, भीगे हुए बाजरे घी व नेवैद्य आदि से नाग देवता की पूजा करें। गेंहू, भूने हुए चने और जौं का प्रसाद नागों को चढ़ाएं तथा आप भी इन्हीं चीजों का भोजन करें और प्रसाद के रूप में बांटे।
नागपंचमी विशेष: जानें, नागों के बारे में 9 हैरतंगेज बातें
- भविष्य पुराण में बताया गया है कि सावन महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की पंचमी नाग देवता को समर्पित है इसलिए इसे नागपंचमी कहते हैं। कृष्ण पक्ष की नागपंचमी 14 जुलाई को और शुक्ल पक्ष की नागपंचमी 27 जुलाई को है।
- भविष्य पुराण के पंचमी कल्प में कहा गया है कि नागपंचमी के दिन नागलोक में भव्य उत्सव मनाया जाता। इसकी वजह यह है कि इसदिन यायावर वंश में उत्पन्न आस्तिक मुनि ने नागों को राजा जनमेजय के नागयज्ञ में जलकर नष्ट होने से बचाया था।
- सावन की पंचमी तिथि को जो व्यक्ति नाग देवता की पूजा करते हैं और मीठा भोजन करते हैं वह मृत्यु के बाद नागलोक में जाकर सुख भोग प्राप्त करते हैं और द्वापर में पराक्रमी राजा होते हैं। ऐसा पुराण में कहा गया है।
- इन दोनों कारणों से नागपंचमी का दिन नागों के लिए सबसे खास माना गया है। गाय के दूध से आस्तिक मुनि ने जले हुए नागों को स्नान कराकर उनके शरीर के दाह को दूर किया था इसलिए नागपंचमी को दूध से स्नान कराने पर नाग देवता की कृपा प्राप्त होती।
- नागराज वासुकी ने कहा है कि जो भी व्यक्ति नागपंचमी के दिन नागों की पूजा करते हैं उन्हें नागवंश अभय देते हैं यानी उन्हें नागों द्वारा काटे जाने का भय नहीं रहता हैं। लेकिन यह भी ध्यान रखें कि सांप कहते हैं 'मनुष्य और हमारी भेंट न हो' मनुष्यों को उनसे दूर ही रहना चाहिए।
- भविष्य पुराण के पंचमी कल्प में बताया गया है कि सांप काटने से जिनकी मृत्यु होती है वह अगले जन्म में विषहीन सांप होते हैं। नागपंचमी के दिन नाग की पूजा करने से ऐसे लोगों की आत्मा को नाग योनी से मुक्ति मिलती है।
- नाग माता कद्रू ने अपने नाग पुत्रों को शाप दिया था कि तुम लोगों ने मेरी आज्ञा का पालन नहीं किया है इसलिए पाण्डव वंश के राजा जनमेजय के नाग यज्ञ में जलकर तुम सब नष्ट हो जाओगे। ब्रह्मा जी ने पंचमी तिथि को ही यह उपाय बताया था कि आस्तिक मुनि कैसे उन्हें जलने से बचाएंगे।
- नागपंचमी के दिन कौड़ी, धान, दूर्वा, और गाय का गोबर घर के मुख्य द्वार पर रखकर नाग देवता की पूजा करने से घर में विषैले जीवों के प्रवेश की संभावना कम रहती है।
- नागपंचमी के दिन खीर, घी और शहद से नागों की पूजा करनी चाहिए और संभव हो तो पूरे दिन मीठा खाना चाहिए। अगर ऐसा कर पाना संभव नहीं हो तो पहले मीठा खाकर ही अन्य भोजन करें। इस दिन कई क्षेत्रों में नीम, नींबू चबाने की भी परंपरा है। कहते हैं इससे सांप के काटने का भय दूर होता है।
- कृष्णपक्ष की नागपंचमी के दिन बिहार, बंगाल और राजस्थान में घर-घर नाग देवता की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सर्पगंधा की जड़ी बाजू में बांधने से सांप का भय दूर होता है।
मान्यता के अनुसार एक किसान के दो बेटे तथा एक पुत्री थी, एक दिन हल चलाते समय उसने सांप के 3 बच्चों को हल से रौंदकर मार डाला, नागिन बच्चों के दुख में बहुत दुखी हुई, उस ने बदला लेने के लिए रात को जाकर किसान की पत्नी और उसके दोनों बेटों को डस लिया तथा अगले दिन वह उसकी बेटी को डंसने गई तो किसान की बेटी ने उसे मीठा दूध पिलाया तथा अपने माता-पिता को माफ करने के लिए प्रार्थना की। नागमाता प्रसन्न हुई तथा उसने सभी को जीवन दान दिया। बेटी ने हर साल नागमंचमीं के दिन पूजा करने का वायदा किया। कहा जाता है कि जो नागदेवता की पंचमी को पूजा करता है उसकी सात पीढिय़ों की रक्षा नागदेवता करते हैं।
नाग पंचमी मनाए जाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं
एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी विदुषी और सुशील थी। उसके भाई नहीं था। एक दिन सभी सातों बहू मिट्टी खोदने गईं। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। छोटी बहू ने उसे रोका और सर्प से कहा-हम अभी लौटकर आती हैं तुम यहां से जाना मत। वह घर चली गई और कामकाज में व्यस्त होकर सर्प से किया वादा भूल गई। उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो वहां पहुंची और सर्प को उस स्थान पर देखा। उसने सर्प को भाई बना लिया।
कुछ दिन बाद वह सर्प मनुष्य का रूप धरकर उसके घर आया और बोला कि मेरी बहन को मेरे साथ भेज दो। सबने कहा कि इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं। बचपन में बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी बहू को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि मैं वही सर्प हूं, इसलिए तू डरना नहीं।
इस प्रकार वह सर्प के घर पहुंच गई। वहां धन-ऐश्वर्य देखकर वह चकित रह गई। कुछ दिन बाद सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चांदी, वस्त्र-भूषण देकर उसके घर पहुंचा दिया। सर्प ने उसे हीरे-मणियों का अद्भुत हार दिया। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने सुनी तो उसने राजा से कहकर वह हार मंगा लिया।
छोटी बहू ने अपने सर्प भाई को याद किया और प्रार्थना की कि भैया रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी। यह देख राजा ने सेठ के पास खबर भेजी। सेठजी स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए।
राजा ने छोटी बहू से पूछा- क्या जादू किया है। छोटी बहू बोली- राजन! क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। राजा ने कहा- पहनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया। यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं दीं। छोटी बहू हार सहित घर लौट आई।
उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी।
उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी धर्म बहन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं डस लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है।
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