सावन को भगवान शिव का महीना कहा जाता है। इस माह में लोग शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करते हैं। शिवजी के साथ उनके तीन प्रतीकों की भीअराधना की जाती है। उनके तीन प्रतीक हैं उनका तीसरा नेत्र जिसके कारण उन्हें त्रयंबक कहा जाता है, उनका त्रिशूल जो सदैव उनके साथ रहता है और नंदी जो उनका वाहन है। क्या आपने सोचा है कि शिव के इन तीनों प्रतीकों का महत्व क्या है। आइये जाने शिव के प्रतीकों के अर्थ।
हमारी परंपरा में भगवान शिव को कई सारी वस्तुओं से सजा हुआ दिखाया जाता है। उनके माथे पर तीसरी आंख, उनका वाहन नंदी, और उनका त्रिशूल इसके उदाहरण हैं। क्या सच में शिव के माथे पर एक और आंख है? और क्या वे हमेशा नंदी और त्रिशूल को अपने साथ रखते हैं? या फिर इन्हें चिन्हों की तरह इस्तेमाल करके हमें कुछ और समझाने की कोशिश की गई है? आइये जानते हैं
त्रयंबक यानि तीसरा नेत्र
आप दो आंखों से बाहरी दुनिया को देखते हैं जबकि शिव की तीसरी आंख आपको अपने भीतर देखने का संदेश देती है। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं, वहीं अगर तीसरी आंख खुल जाती है, तो इसका मतलब है कि बोध का एक दूसरा आयाम खुल जाता है जो कि भीतर की ओर देख सकता है। इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं। बोध के विकास के लिए आपकी ऊर्जा को विकसित होना होगा। योग की सारी प्रक्रिया यही है कि आपकी ऊर्जा को इस तरीके से विकसित किया जाए और सुधारा जाए कि आपका बोध बढ़े और तीसरी आंख खुल जाए। आपकी दो आंखें दो दृश्येंद्रियां हैं जबकि तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक है।
तीसरी आंख का मतलब है कि आपका बोध जीवन के द्वैत से परे चला गया है। तब आप जीवन को सिर्फ उस रूप में नहीं देखते जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी है। बल्कि आप जीवन को उस तरह देख पाते हैं, जैसा वह वाकई है।
शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। तीसरी आंख का मतलब यह नहीं है कि किसी के माथे में दरार पड़ी और वहां कुछ निकल आया! इसका मतलब सिर्फ यह है कि बोध या अनुभव का एक दूसरा आयाम खुल गया है। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं। अगर मैं अपना हाथ उन पर रख लूं, तो वे उसके परे नहीं देख पाएंगी। उनकी सीमा यही है। अगर तीसरी आंख खुल जाती है, तो इसका मतलब है कि बोध का एक दूसरा आयाम खुल जाता है जो कि भीतर की ओर देख सकता है। इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं। इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, उनका अनुभव हो सकता है। आपके बोध के विकास के लिए सबसे अहम चीज यह है – कि आपकी ऊर्जा को विकसित होना होगा और अपना स्तर ऊंचा करना होगा। योग की सारी प्रक्रिया यही है कि आपकी ऊर्जा को इस तरीके से विकसित किया जाए और सुधारा जाए कि आपका बोध बढ़े और तीसरी आंख खुल जाए। तीसरी आंख दृष्टि की आंख है। दोनों भौतिक आंखें सिर्फ आपकी इंद्रियां हैं। वे मन में तरह-तरह की फालतू बातें भरती हैं क्योंकि आप जो देखते हैं, वह सच नहीं है। आप इस या उस व्यक्ति को देखकर उसके बारे में कुछ अंदाजा लगाते हैं, मगर आप उसके अंदर शिव को नहीं देख पाते। आप चीजों को इस तरह देखते हैं, जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी हैं। कोई दूसरा प्राणी उसे दूसरे तरीके से देखता है, जो उसके जीवित रहने के लिए जरूरी है। इसीलिए हम इस दुनिया को माया कहते हैं। माया का मतलब है कि यह एक तरह का धोखा है। इसका मतलब यह नहीं है कि अस्तित्व एक कल्पना है। बस आप उसे जिस तरीके से देख रहे हैं, जिस तरह उसका अनुभव कर रहे हैं, वह सच नहीं है।
इसलिए एक और आंख को खोलना जरूरी है, जो ज्यादा गहराई में देख सके। तीसरी आंख का मतलब है कि आपका बोध जीवन के द्वैत से परे चला गया है। तब आप जीवन को सिर्फ उस रूप में नहीं देखते जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी है। बल्कि आप जीवन को उस तरह देख पाते हैं, जैसा वह वाकई है। हाल में ही एक वैज्ञानिक ने एक किताब लिखी है, जिसमें बताया गया है कि इंसानी आंख किस सीमा तक भौतिक अस्तित्व को देख सकती है। उनका कहना है कि इंसानी आंख भौतिक अस्तित्व का सिर्फ 0.00001 फीसदी देख सकती है। इसलिए अगर आप दो भौतिक आंखों से देखते हैं, तो आप वही देख सकते हैं, जो सामने होता है। अगर आप तीसरी आंख से देखते हैं, तो आप वह देख सकते हैं जिसका सामने आना अभी बाकी है और जो सामने आ सकता है। हमारे देश और हमारी परंपरा में, ज्ञान का मतलब किताबें पढ़ना, किसी की बातचीत सुनना या यहां-वहां से जानकारी इकट्ठा करना नहीं है। ज्ञान का मतलब जीवन को एक नई दृष्टि से देखना है। किसी कारण से महाशिवरात्रि के दिन प्रकृति उस संभावना को हमारे काफी करीब ले आती है। ऐसा करना हर दिन संभव है। इस खास दिन का इंतजार करना हमारे लिए जरूरी नहीं है, मगर इस दिन प्रकृति उसे आपके लिए ज्यादा उपलब्ध बना देती है।
त्रिशूल
शिव का त्रिशूल जीवन के तीन मूल तत्वों का प्रतीक है। जिसे रुद्र, हर और सदाशिव, या फिर इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना भी कहा जाता है और ये ही मानव तंत्र में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियों बाईं, दाहिनी और मध्य के बारे में भी है। आप इन सभी के बीच संतुलन बना कर ही चेतनता की चोटी पर पहुंच सकते हैं। ये सब तभी संभव है जब आप अपने अंदर एक स्थिर अवस्था बना लें।
शिव का त्रिशूल जीवन के तीन मूल पहलुओं को दर्शाता है। योग परंपरा में उसे रुद्र, हर और सदाशिव कहा जाता है। ये जीवन के तीन मूल आयाम हैं, जिन्हें कई रूपों में दर्शाया गया है। उन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना भी कहा जा सकता है। ये तीनों प्राणमय कोष यानि मानव तंत्र के ऊर्जा शरीर में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियां हैं – बाईं, दाहिनी और मध्य। नाड़ियां शरीर में उस मार्ग या माध्यम की तरह होती हैं जिनसे प्राण का संचार होता है। तीन मूलभूत नाड़ियों से 72,000 नाड़ियां निकलती हैं। इन नाड़ियों का कोई भौतिक रूप नहीं होता। यानी अगर आप शरीर को काट कर इन्हें देखने की कोशिश करें तो आप उन्हें नहीं खोज सकते। लेकिन जैसे-जैसे आप अधिक सजग होते हैं, आप देख सकते हैं कि ऊर्जा की गति अनियमित नहीं है, वह तय रास्तों से गुजर रही है। प्राण या ऊर्जा 72,000 विभिन्न रास्तों से होकर गुजरती है। इड़ा और पिंगला जीवन के बुनियादी द्वैत के प्रतीक हैं। इस द्वैत को हम परंपरागत रूप से शिव और शक्ति का नाम देते हैं। या आप इसे बस पुरुषोचित और स्त्रियोचित कह सकते हैं, या यह आपके दो पहलू – तर्क-बुद्धि और सहज-ज्ञान हो सकते हैं।
शिव का त्रिशूल जीवन के तीन मूल पहलुओं को दर्शाता है। योग परंपरा में उसे रुद्र, हर और सदाशिव कहा जाता है। ये जीवन के तीन मूल आयाम हैं, जिन्हें कई रूपों में दर्शाया गया है। उन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना भी कहा जा सकता है।
जीवन की रचना भी इसी के आधार पर होती है। इन दोनों गुणों के बिना, जीवन ऐसा नहीं होता, जैसा अभी है। सृजन से पहले की अवस्था में सब कुछ मौलिक रूप में होता है। उस अवस्था में द्वैत नहीं होता। लेकिन जैसे ही सृजन होता है, उसमें द्वैतता आ जाती है। पुरुषोचित और स्त्रियोचित का मतलब लिंग भेद से – या फिर शारीरिक रूप से पुरुष या स्त्री होने से – नहीं है, बल्कि प्रकृति में मौजूद कुछ खास गुणों से है। प्रकृति के कुछ गुणों को पुरुषोचित माना गया है और कुछ अन्य गुणों को स्त्रियोचित। आप भले ही पुरुष हों, लेकिन यदि आपकी इड़ा नाड़ी अधिक सक्रिय है, तो आपके अंदर स्त्रियोचित गुण हावी हो सकते हैं। आप भले ही स्त्री हों, मगर यदि आपकी पिंगला अधिक सक्रिय है तो आपमें पुरुषोचित गुण हावी हो सकते हैं। अगर आप इड़ा और पिंगला के बीच संतुलन बना पाते हैं तो दुनिया में आप प्रभावशाली हो सकते हैं। इससे आप जीवन के सभी पहलुओं को अच्छी तरह संभाल सकते हैं। अधिकतर लोग इड़ा और पिंगला में जीते और मरते हैं, मध्य स्थान सुषुम्ना निष्क्रिय बना रहता है। लेकिन सुषुम्ना मानव शरीर-विज्ञान का सबसे अहम पहलू है। जब ऊर्जा सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करती है, जीवन असल में तभी शुरू होता है। आप एक नए किस्म का संतुलन पा लेते हैं, एक अंदरूनी संतुलन, जिसमें बाहर चाहे जो भी हो, आपके भीतर एक खास जगह बन जाती है, जो किसी भी तरह की हलचल में कभी अशांत नहीं होती, जिस पर बाहरी हालात का असर नहीं पड़ता। आप चेतनता की चोटी पर सिर्फ तभी पहुंच सकते हैं, जब आप अपने अंदर यह स्थिर अवस्था बना लें।
शिव का वाहन नंदी
नंदी अनंत प्रतीक्षा का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में प्रतीक्षा को सबसे बड़ा गुण माना गया है क्योंकि इससे उत्पन्न होता है धैर्य और ध्यान का चरम स्तर। नंदी शिव का सबसे नजदीकी है क्योंकि उसमें ये विशिष्ट गुण है। आराधना और पूजा का महत्व तभी है जब आप बस पूरी निष्ठा से उसे करते रहें, बिना अपेक्षा के, ना स्वर्ग जाने की कोशिश, ना मोक्ष की लालसा ना और कुछ इच्छा पूर्ती की अपेक्षा बस प्रतीक्षा कि प्रभु आयेंगे और उससे उपजा धैर्य की जो आपके योग्य है वो प्राप्त होगा। यही नंदी की विशेषता है और यही उसके शिव से अभिन्न होने का रहस्य।
नंदी का गुण यह है की, वह बस सजग होकर बैठा रहता है। यह बहुत अहम चीज है – वह सजग है, सुस्त नहीं है। वह आलसी की तरह नहीं बैठा है। वह पूरी तरह सक्रिय, पूरी सजगता से, जीवन से भरपूर बैठा है, ध्यान यही है।
नंदी अनंत प्रतीक्षा का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में इंतजार को सबसे बड़ा गुण माना गया है। जो बस चुपचाप बैठकर इंतजार करना जानता है, वह कुदरती तौर पर ध्यानमग्न हो सकता है। नंदी को ऐसी उम्मीद नहीं है कि शिव कल आ जाएंगे। वह किसी चीज का अंदाजा नहीं लगाता या उम्मीद नहीं करता। वह बस इंतजार करता है। वह हमेशा इंतजार करेगा। यह गुण ग्रहणशीलता का मूल तत्व है। नंदी शिव का सबसे करीबी साथी है क्योंकि उसमें ग्रहणशीलता का गुण है। किसी मंदिर में जाने के लिए आपके अंदर नंदी का गुण होना चाहिए। ताकि आप बस बैठ सकें। इस गुण के होने का मतलब है – आप स्वर्ग जाने की कोशिश नहीं करेंगे, आप यह या वह पाने की कोशिश नहीं करेंगे – आप बस वहां बैठेंगे। लोगों को हमेशा से यह गलतफहमी रही है कि ध्यान किसी तरह की क्रिया है। नहीं – यह एक गुण है। यही बुनियादी अंतर है। प्रार्थना का मतलब है कि आप भगवान से बात करने की कोशिश कर रहे हैं। ध्यान का मतलब है कि आप भगवान की बात सुनना चाहते हैं। आप बस अस्तित्व को, सृष्टि की परम प्रकृति को सुनना चाहते हैं। आपके पास कहने के लिए कुछ नहीं है, आप बस सुनते हैं। नंदी का गुण यही है, वह बस सजग होकर बैठा रहता है। यह बहुत अहम चीज है – वह सजग है, सुस्त नहीं है। वह आलसी की तरह नहीं बैठा है। वह पूरी तरह सक्रिय, पूरी सजगता से, जीवन से भरपूर बैठा है, ध्यान यही है। ध्यान का मतलब मुख्य रूप से यही है कि वह इंसान अपना कोई काम नहीं कर रहा है। वह बस वहां मौजूद है। जब आप बस मौजूद होते हैं, तो आप अस्तित्व के विशाल आयाम के प्रति जागरूक हो जाते हैं जो हमेशा सक्रिय होता है। आप जागरूक हो जाते हैं कि आप उसका एक हिस्सा हैं। आप अब भी उसका एक हिस्सा हैं मगर यह जागरूकता – कि ‘मैं उसका एक हिस्सा हूं’ – ध्यान में मग्न होना है। नंदी उसी का प्रतीक है। वह बस बैठा रहकर हर किसी को याद दिलाता है, ‘तुम्हें मेरी तरह बैठना चाहिए।’ ‘ध्यानलिंग मंदिर के बाहर भी हमने एक बड़ा बैल स्थापित किया है। उसका संदेश बहुत साफ है, आपको अपनी सभी फालतू बातों को बाहर छोड़कर ध्यानलिंग में जाना चाहिए।’ – सद्गुरु।
क्या है भगवान शिव की तीसरी आंख का वैज्ञानिक रहस्य, जानिए
भगवान शंकर का एक नाम त्रिलोचन भी है। त्रिलोचन का अर्थ होता है तीन आंखों वाला क्योंकि एक मात्र भगवान शंकर ही ऐसे हैं जिनकी तीन आंखें हैं। पुराणों में भगवान शंकर के माथे पर एक तीसरी आंख के होने का उल्लेख है। उस आंख से वे वह सबकुछ देख सकते हैं जो आम आंखों से नहीं देखा जा सकता।
वैज्ञानिक रहस्य : मस्तिष्क के दो भागों के बीच एक पीनियल ग्लेंड होती है। तीसरी आंख इसी को दर्शाती है। इसका काम है एक हार्मोन्स को छोड़ना जिसे मेलाटोनिन हार्मोन कहते हैं, जो सोने और जागने के घटना चक्र का संचालन करता है। जर्मन वैज्ञानिकों का ऐसा मत है कि इस तीसरे नेत्र के द्वारा दिशा ज्ञान भी होता है। इसमें पाया जाने वाला हार्मोन्स मेलाटोनिन मनुष्य की मानसिक उदासी से सम्बन्धित है। अनेकानेक मनोविकारों एवं मानसिक गुणों का सम्बन्ध यहां स्रवित हार्मोन्स स्रावों से है।
यह ग्रंथि लाइट सेंसटिव है इसलिए कफी हद तक इसे तीसरी आंख भी कहा जाता है। आप भले ही अंधे हो जाएं लेकिन आपको लाइट का चमकना जरूर दिखाई देगा जो इसी पीनियल ग्लेंड के कारण है। यदि आप लाइट का चमकना देख सकते हैं तो फिर आप सब कुछ देखने की क्षमता रखते हैं।
भोले की तीसरी आंख
शिव को त्रयंबक कहते है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। तीसरी आंख का मतलब ये नहीं है कि उनके माथे पर कुछ निकल आया! इसका मतलब सिर्फ ये है कि ज्ञान और अनुभव का एक तीसरा आयाम भी है। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं। अगर तीसरी आंख खुल जाती है, तो इसका मतलब है कि ज्ञान का आयाम खुल जाता है जो कि भीतर की ओर देख सकता है। इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, उनका अनुभव हो सकता है। तो आप वह देख सकते हैं जिसका सामने आना अभी बाकी है और जो सामने आ सकता है। ज्ञान का मतलब जीवन को एक नई दृष्टि से देखना है।
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