यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस पर्व में महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। शाम को छलनी से चांद के दर्शन करने के बाद अपने पति की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं। करवा चौथ में छलनी,चांद और करवा का विशेष महत्व होता है।
करवा चौथ में छलनी के पीछे एक पौराणिक कथा है। एक पतिव्रता स्त्री जिसका नाम वीरवती था इसने विवाह के पहले साल करवाचौथ का व्रत रखा, लेकिन भूख के कारण इसकी हालत खराब होने लगी। भाईयों से बहन की यह स्थिति देखी नहीं जा रही थी। इसलिए चांद निकलने से पहले ही एक पेड़ की ओट में छलनी के पीछे दीप रखकर बहन से कहने लगे कि देखो चांद निकल आया है। बहन ने झूठा चांद देखकर व्रत खोल लिया। इससे वीरवती के पति की मृत्यु हो गई। वीरवती ने दोबारा करवा चौथ का व्रत रखा जिसके बाद मृत पति जीवित हो उठा।
वहीं छलनी से अपने पति को देखने का मनोवैज्ञानिक कारण भी है। दरअसल पत्नी अपने मन से सभी विचारों और भावनाओं को छलनी से छानकर शुद्ध कर लेती है और अपने पति के प्रति सच्चे प्रेम को प्रगट करती है।
मिट्टी का करवा पंच तत्व का प्रतीक माना जाता है। करवा का अर्थ होता है मिट्टी का बर्तन। इस व्रत में सुहागिन स्त्रियां करवा की पूजा करके करवा माता से प्रार्थना करती है कि उनका प्रेम अटूट हो। पति-पत्नी के बीच विश्वास का कच्चा धागा कमजोर न हो पाए।
करवा चौथ में सरगी खाया जाता है इसके अंतर्गत सूर्योदय से पहले महिलाएं मिठाई, हलवा और ड्राई फ्रूटस खाती है। इसके बाद पूरे दिन व्रत रखती हैं और शाम को चांद के दर्शन करने के बाद अपने पति के हाथो से जल ग्रहण करने के बाद व्रत तोड़ती हैं।
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