Sai Baba
साईबाबा का असल नाम और जन्मनाम आज तक किसी को पता नही है। कुछ लोगो का ऐसा मानना है की उनका जन्म 28 सितम्बर 1835 में हुआ था, लेकिन इससे संबंधित को पर्याप्त दस्तावेज नही है। अक्सर जब उनसे उनके भूतकाल के बारे में पूछा जाता था तब हमेशा वे दुर्ग्राह्य जवाब देते थे। “साईं” नाम उन्हें उनके शिर्डी आने पर दिया गया था, शिर्डी महाराष्ट्र के पश्चिम का एक गाँव है। साईं शब्द धार्मिक भिक्षुको से जुड़ा हुआ है। बहुत सी भारतीय और मध्य पूर्व भाषाओ में “बाबा” शब्द साधारणतः बड़े पापा, पापा और किसी वृद्ध पुरुष के संबोधन में बोला जाता था। इसीलिए साईं बाबा को लोग एक पवित्र और धार्मिक पिता मानते थे। साईं बाबा के कुछ अनुयायी भी उस समय में धार्मिक संत और गुरु के नाम से प्रसिद्ध हुए थे, जैसे की शिर्डी के खंडोबा मंदिर का पुजारी महालसापति और उपासनी महाराज। दुसरे धार्मिक गुरु भी उनका बहुत सम्मान करते थे जैसे की संत बिड़कर महाराज, संत गंगागीर, संत जानकीदास महाराज और सती गोदावरी माताजी। साईबाबा सभी बाबाओ को अपना भाई कहते थे, विशेषतः अक्कलकोट के स्वामी समर्थ को वे अपना भाई मानते थे।
साईं बाबा जिन्हें शिरडी के साईं बाबा भी कहते है एक भारतीय आध्यात्मिक गुरु थे जिनको उनके भक्त फ़कीर या सतगुरु कहकर बुलाते थे | उनके भक्त हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के थे जबकि वो स्वय हिन्दू थे आय मुस्लिम ये अभी भी रहस्य है | उन्होंने सच्चे सतगुरु या मुर्शिद की राह दिखाई और आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाया | साईं बाबा के चमत्कारों की वजह से दूर दूर से लोग मिलने आते थे और धीरे धीरे वो एक प्रसिद्ध संत के रूप में जाने जाने लगे | साईं बाबा को आज पुरे विश्व में पूजा जाता है और प्रतिदिन अनेको लोग शिरडी के साईं बाबा मन्दिर में उनके दर्शन करने आते है |
शिरडी साईं बाबा का प्रारम्भिक जीवन
साई बाबा का जन्म 28 सितम्बर 1835 को महाराष्ट्र के पथरी गाँव में हुआ था | साईं बाबा के माता पिता और बचपन की इतिहास में कोई जानकारी नही है | उनके बारे में पहली जानकारी साईं सत्चरित्र किताब में शिरडी गाँव से प्राप्त होती है | साईं बाबा 16 वर्ष की उम्र में अहमदनगर जिले के शिरडी गाँव में पहुचे | यहा पर उन्होंने एक नीम के पेड़ के नीचे आसन में बैठकर तपस्वी जीवन बिताना शुरू कर दिया | जब गाँव वालो ने उन्हें देखा तो वो चौंक गये क्योंकि इतने युवा व्यक्ति को इतनी कठोर तपस्या करते हुए उन्होंने पहले कभी नही देखा | वो ध्यान में इतने लींन थे कि उनको सर्दी , गर्मी और बरसात का कोई एहसास नही हो रहा था |
दिन में उनके पास कोई नही होता और रात को वो किसी से नही डरते थे |उनकी इस कठोर तपस्या ने गाँववालो का ध्यान उनकी ओर खीचा और कई धार्मिक लोग नियमित उनको देखने आते थे | कुछ लोग उनको पागल कहकर उन पर पत्थर फेंकते थे | साईं बाबा एक दिन अचानक गाँव से चले गये और किसी को पता नही चला | वो तीन वर्ष तक शिरडी में रहे और उसके बाद शिरडी से गायब हो गये | उसके बाद एक साल बाद वो फिर शिरडी लौटे और हमेशा के लिए वहा बस गये |
साईं सत्चरित्र किताब के अनुसार, साईं जब 16 साल के थे तभी ब्रिटिश भारत के महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर जिले के शिर्डी गाँव में आए थे। वे एक सन्यासी बनकर जिन्दगी जी रहे थे, और हमेशा नीम के पेड़ के निचे ध्यान लगाकर बैठे रहते या आसन में बैठकर भगवान की भक्ति में लीन हो जाते थे। श्री साईं सत्चरित्र में गाँव वालो की उनके प्रति की प्रतिक्रिया का भी उल्लेख किया गया है।
गाँव के लोग भी उस 16 साल के लड़के को लगातार ध्यान, लगाता हुआ देख आश्चर्यचकित थे, क्योकि ठंडी और गर्मी का उनके शरीर पर कोई प्रभाव दिखाई नही दे रहा था। दिन में वे किसी से नही मिलते थे और रात में उन्हें किसी का डर नही था।
उनकी मौजूदगी ने गाँव वालो की जिज्ञासा को आकर्षित किया था और रोज़ उन्हें धार्मिक प्रवृत्ति के लोग जैसे महालसापति, अप्पा जोगले और काशीनाथ मिलने आया करते थे। कुछ लोग उन्हें पागल समझते थे तो कुछ लोग उनपर पत्थर भी फेकते थे। इसके बाद साईबाबा ने गाँव छोड़ दिया था और इसके बाद गाँव वालो को उनकी थोड़ी जानकारी मिली थी।
जानकारों के अनुसार से बहुत से संत और फकीरों से मिले थे और जुलाहा की तरह काम करते थे। कहा जाता है की 1857 में रानी लक्ष्मीबाई के समय में भारतीय क्रांति के समय में भी साईबाबा थे। ऐसा माना जाता है की सबसे पहले साईबाबा तीन साल तक शिर्डी रहे थे और फिर एक साल तक गायब हो गये थे और फिर हमेशा के लिए 1858 में शिर्डी वापिस आ गये थे, जिनमे उनके जन्म को 1838 का बताया गया था।
साई बाबा का शिरडी दुबारा लौटना
1858 में साईं बाबा फिर शिरडी लौटे | इस बार उन्होंने वेशभूषा का अलग तरीका अपनाया जिसमे उन्होंने घुटनों तक एक कफनी बागा और एक कपड़े की टोपी पहन रखी थी | उनके एक भक्त रामगिर बुआ ने बताया कि जब वो शिरडी आये तब उन्होंने खिलाड़ी की तरह कपड़े और कमर तक लम्बे बाल थे जिन्होंने उसे कभी नही कटवाए | उनके कपड़ो को देखकर वो सूफी संत लग रहे थे जिसे देखकर गाँव वालो ने उन्हें मुस्लिम फकीर समझा | इसी कारण एक हिन्दू गाँव होने के कारण उनका उचित सत्कार नही किया गया था |
लगभग 5 वर्षो तक वो नीम के पेड़ के नीचे रहे और अक्सर लम्बे समय तक शिरडी के पास के जंगलो में घूमते रहते थे | वो किसी से ज्यादा बोलते नही थे क्योंकि उन्होंने लम्बे समय तक तपस्या की थी |अंततः उन्होंने एक जर्जर मस्जिद को अपना घर बनाया और एकाकी जीवन बिताने लगे | वहा पर बैठने से आने जाने वाले लोग उनको भिक्षा दे देते थे जिससे उनका जीवन चल जाता था |उस मस्जिद में उन्होंने एक धुनी जलाई जिससे निकली राख को उनसे मिलने वालो को देते थे | ऐसा माना जाता है कि उस राख में चिकत्सीय शक्ति थी |
वो अब गाँव वालो के लिए एक हकीम बन गये थे जो राख से उनकी बीमारी दूर करते थे | साईं बाबा उनसे मिलने वालो को आध्यात्मिक शिक्षा भी देते थे और उन्हें पवित्र हिन्दू ग्रंथो के साथ कुरान भी पढने को कहते थे |वो ईश्वर के अटूट स्मरण के लिए अपरिहार्यता के लिए प्रेरित करते और अक्सर गुप्त तरीको दृष्टान्तों, प्रतीक और रूपक से खुद को व्यक्त करते थे | 1910 ईस्वी के बाद साईं बाबा की प्रसिधी मुंबई तक फ़ैल गयी | अनेक लोग उनसे मिलने आने लगे क्योंकि उनके चमत्कारी तरीको की कारण उन्हें संत मानते थे |
Shirdi Sai Baba साईं बाबा ने “सबका मालिक एक ” का नारा दिया था जिससे हिन्दू मुस्लिम सदभाव बना रहे | उन्होंने अपने जीवन में हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मो का अनुसरण किया | वो अक्सर कहा करते थे “मुझ पर विशवास करो , तुम्हारी प्रार्थना का उत्तर दिया जाएगा ” | वो हमेशा अपनी जबान पर “अल्लाह मालिक ” बोलते रहते थे |
Shirdi Sai Baba साईं बाबा ने अपने पीछे ना कोई आध्यात्मिक वारिस और ना कोई अनुयायी छोड़ा | इसके अलावा उन्होंने कई लोगो के अनुरोध के बावजूद किसी को दीक्षा दी | उनके कुछ अनुयायी अपने आध्यात्मिक पहचान की वजह से प्रसिद्ध हुए जिनमे सकोरी के उपासनी महाराज का नाम आता है | साईं बाबा की मृत्यु 15 अक्टूबर 1918 को शिरडी गाँव में ही हुयी | मृत्य के समय उनकी उम्र 83 वर्ष थी |Shirdi Sai Baba साईं बाबा की मृत्यु के बाद उनके भक्त उपासनी महाराज को प्रतिदिन आरती सौपते थे जब भी वो शिरडी आते थे |
1858 में साईबाबा शिर्डी वापिस आए थे। इस समय वे अलग ही तरह के कपडे पहने हुए थे, उपर उन्होंने घुटनों तक कफनी पोशाक और कपड़ो की ही एक टोपी पहन रखी थी। उनके एक अनुयायी रामगिर बुआ ने ध्यान से देखने पर पाया की साईबाबा ने एक व्यायामी की तरह कपडे पहने हुए है, कपड़ो के साथ-साथ उनके बाल भी काफी घने और लम्बे थे। जब लम्बे समय के बाद वे शिर्डी लौटकर आए थे तो लोगो को उनका एक नया रूप देखने मिला था। उनकी पोषाख के अनुसार वे एक मुस्लिम फ़क़ीर लग रहे थे और लोग उन्हें हिन्दू और मुस्लिम दोनों का गुरु मानते थे।
वापिस आने के बाद तक़रीबन 4 से 5 साल तक साईबाबा एक नीम के पेड़ के निचे रहते थे और अक्सर कभी-कभी लम्बे समय के लिए शिर्डी के जंगलो में भी चले जाते थे। लंबे समय तक ध्यान में लगे रहने की वजह से वे कयी दिनों तक लोगो से बात भी नही करते थे। लेकिन बाद में कुछ समय बाद लोगो ने उन्हें एक पुरानी मस्जिद रहने के लिए दी, वहाँ वे लोगो से भिक्षा मांगकर रहते थे और वहाँ उनसे मिलने रोज़ बहुत से हिन्दू और मुस्लिम भक्त आया करते थे। मस्जिद में पवित्र धार्मिक आग भी जलाते थे जिसे उन्होंने धुनी का नाम दिया था, लोगो के अनुसार उस धुनी में एक अद्भुत चमत्कारिक शक्तियाँ थी, उस धुनी से ही साईबाबा अपने भक्तो को जाने से पहले उधि देते थे। लोगो के अनुसार साईबाबा द्वारा दी गयी उस उधि में अद्भुत ताकत होती थी। संत के साथ-साथ वे एक स्थानिक हकीम की भूमिका भी निभाते थे और बीमार लोगो को अपनी धुनी से ठीक करते थे। साईबाबा अपने भक्तो को धार्मिक पाठ भी पढ़ाते थे, और हिन्दुओ को रामायण और भगवत गीता और मुस्लिमो को कुरान पढने के लिए कहते थे।
1910 के बाद साईबाबा की ख्याति मुंबई में फैलती गयी। इसके बाद बहुत से लोग उनके दर्शन करने आते गये क्योकि उन्हें एक चमत्कारिक और शक्तिशाली अवतार और बाबा मानने लगे थे लोग। इसके बाद गाँव वालो ने उनका पहला मंदिर भिवपुरी, कर्जत में बनाया।
श्री साईं बाबा समाधी वाला दिन
साईं बाबा अपने अंतिम दिनों में अपने भक्तो से धार्मिक पुस्तके पढवाते थे और उन्हें उस पुस्तक का आंतरिक ज्ञान समझाते थे .
यह हर दिन सुबह और शाम को होता था .
8 अक्टूम्बर 1918 वाले दिन बाबा साईं बहूत कमजोर हो गये . वे मस्जिद की दीवार पर बेठ गये. आरती और पूजा रोज की तरह होती थी .
साईं बाबा के पास भक्तो को जाने नही दिया जा रहा था बाबा बीमार जो हो गये थे .
कुछ लोग एक चीते के साथ गाव में आये कुछ तमाशा दिखा कर पैसा कमाने
चीता भी बीमारी की वजह से कमजोर हो गया था . जब चीता बाबा के सामने आया तब साईं बाबा ने उस बीमार चीते की आँखों में देखा . चीते ने भी बाबा को इस तरह देखा की वो कह रहा हो की हे साईं बाबा मुझे अब मुक्ति दिला दो इस दुनिया से . चीते की आँखों में आंसू थे . बाबा ने उस चीते की मदद उसकी मुक्ति के साथ की .
बाबा साईं अपने अंतिम दिनों में दिनों दिन कमजोर होते जा रहे थे .पर उन्होंने अपने इस बीमारी में भी अपने भक्तो से मिलना उन्हें उड़ी देना उन्हें ज्ञान देना नही छोड़ा. वे तो अपना सबकुछ पहले से ही अपने भक्तो के नाम कर चुके थे .
उनके सभी भक्त बाबा की बीमारी से बहूत दुखी थी और प्राथना कर रहे थे की साईं बाबा जल्दी ठीक हो जाए
अंतिम दिन
मंगलवार १५ ओक्टोम्बेर १९१८ विजयदशमी का दिन था साईं बाबा बहूत कमजोर हो गये थे . रोज की तरह भक्त उनके दर्शन के लिए आ रहे थे
साईं बाबा उन्हें प्रसाद और उड़ी दे रहे थे भक्त बाबा से ज्ञान भी प्राप्त कर रहे थे पर किसी भक्त ने नही सोचा की आज बाबा के शरीर का अंतिम दिन है .
सुबह की ११ बज गयी थी .
दोपहर की आरती का समय हो गया था और उसकी त्यारिया चल रही थी कोई देविक प्रकाश बाबा के शरीर में समां गया
आरती सुरु हो गयी और बाबा साईं का चेहरा हर बार बदलता हुआ प्रतीत हुआ . बाबा ने पल पल में सभी देवी देवताओ के रूप के दर्शन अपने भक्तो को कराये वे राम शिव कृष्णा वितल मारुती मक्का मदीना जीसस क्राइस्ट के रूप दिखे
आरती पूर्ण हुई .
बाबा साईं ने अपने भक्तो को कहा की अब आप मुझे अकेला छोड़ दे .
सभी वहा से चले गये साईं बाबा के तब एक जानलेवा खांसी चली और खून की उलटी हुई . तात्या बाबा का एक भक्त तो मरण के करीब था वो अब ठीक हो गया उसे पता भी न चला की वो किस चमत्कार से ठीक हुआ है वह बाबा को धन्यवाद देने बाबा के निवास आने लगा पर बाबा का सांसारिक शरीर तो येही रह गया था .
साईं बाबा ने कहा था की मरने का बाद उनके शरीर को बुट्टी वाडा में रख दिया जाए वो अपने भकतो कि हमेशा सहयता करते रहेगें.
साईं बाबा के भक्त और मन्दिर
Shirdi Sai Baba शिरडी साईं बाबा आंदोलन 19वी सदी में शुरू हुआ जब वो शिरडी रहते थे |एक स्थानीय खंडोबा पुँजारी म्हाल्सप्ति उनका पहला भक्त था | 19 वी सदी तक साईं बाबा के अनुयायी केवल शिरडी और आस पास के गाँवों तक ही सिमित थे | Shirdi Sai Baba साईं बाबा का पहला मन्दिर भिवपुरी में स्तिथ है |शिरडी साईं बाबा के मंदिर में प्रतिदिन 20000 श्रुधालू आते है और त्योहारों के दिनों में ये संख्या एक लाख तक पहुच जाती है | Shirdi Sai Baba शिरडी साईं बाबा को विशेषत : महराष्ट्र , उडीसा . आंध्रप्रदेश , कर्नाटक , तमिलनाडु और गुजरात में पूजा जाता है |2012 में एक अज्ञात श्रुधालू ने पहली बार 11.8 करोड़ के दो कीमती शिरडी मन्दिर में चढाये जिसको बाद में साईं बाबा ट्रस्ट के लोगो ने सबको बताया | शिरडी साईं बाबा के भक्त पुरे विश्व में फैले हुए है |
पूर्व जीवन
भक्तों और ऐतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि जन्म स्थान और तिथि के सन्दर्भ में कोई भी विश्वनीय स्रोत उपलब्द्ध नहीं है। यह ज्ञात है कि उन्होंने काफ़ी समय मुस्लिम फकीरों संग व्यतित किया लेकिन माना जाता है कि उन्होंने किसी के साथ कोई भी व्यवहार धर्म के आधार पर नहीं किया। उनके एक शिष्य दास गनु द्वारा पथरी गांव पर तत्कालीन काल पर शोध किया जिसके चार पृष्ठों में साईं के बाल्यकाल का पुनःनिर्मित किया है जिसे श्री साईं गुरुचरित्र भी कहा जाता है। दास गनु के अनुसार उनका बाल्यकाल पथरी ग्राम में एक फकीर और उनकी पत्नी के साथ गुजरा। लगभग सोलह वर्ष की आयु में वो अहमदनगर, महाराष्ट्र के शिरडी ग्राम में पहुंचे और मृत्यु पर्यंत वहीं रहे।
शिरडी गाँव की वृद्धा जो नाना चोपदार की माँ थी उसके अनुसार एक युवा जो अत्यन्त सुन्दर नीम वृक्ष के नीचे समाधि में लीन दिखाई पड़ा| अति अल्प आयु में बालक को कठोर तपस्या में देख कर लोग आश्चर्य चकित थे| तपस्या में लीन बालक को सर्दी-गर्मी व वर्षा की जरा भी चिंता न थी| आत्मसंयमी बालक के दर्शन करने के लिए अपार जन समूह उमड़ने लगा|
यह अदभुत बालक दिन में किसी का साथ नहीं करता था| उसे रात्रि के सुनसान वातावरण में कोई भय नहीं सताता था| "यह बालक कहाँ से आया था?" यह प्रश्न सबको व्याकुल कर देता था| दिखने में वह बालक बहुत सुन्दर था| जो उसे एक बार देख लेता उसे बार बार देखने की इच्छा होती| वे इस बात से हैरान थे कि यह सुन्दर रूपवान बालक दिन रात खुले आकाश के नीचे कैसे रहता है| वह प्रेम और वैराग्य की साक्षात् मूर्ति दिखाई पड़ते थे|
उन्हें अपने मान अपमान की कभी चिंता नहीं सताती थी| वे साधारण मनुष्यों के साथ मिलकर रहते थे, न्रत्य देखते, गजल व कवाली सुनते हुए अपना सिर हिलाकर उनकी प्रशंसा भी करते| इतना सब कुछ होते हुए भी उनकी समाधि भंग न होती| जब दुनिया जागती थी तब वह सोते थे, जब दुनिया सोती थी तब वह जागते थे| बाबा ने स्वयं को कभी भगवान नहीं माना| वह प्रत्येक चमत्कार को भगवान का वरदान मानते| सुख - दुःख उनपर कोई प्रभाव न डालते थे| संतो का कार्य करने का ढंग अलग ही होता है| कहने को साईं बाबा एक जगह निवास करते थे पर उन्हें विश्व एक समस्त व्यवहारों व व्यापारों का पूर्ण ज्ञान था|
पानी से दिया जलाना
Shirdi Sai Baba साईं बाबा को उनकी मस्जिद और दुसरे मन्दिरों में दिया जलाने का बहुत शौक था लेकिन तेल के लिए उनको वहा के बनियों पर आश्रित रहना पड़ता था | वो प्रत्येक शाम को दिया जलाते और बनियों से दान ले जाते | बनिये साईं बाबा को मुफ्त का तेल देकर थक गये थे और एक दिन उन्होंने साईं बाबा से माफी मांगते हुए तेल देने से मना कर दिया और कहा कि उनके पास तेल नही बचा | बिना किसी विरोध के साईं बाबा वापस अपने मस्जिद में लौट गये | अब उन मिटटी के दियो में उन्होंने पानी भरा और बाती जला दी | वो दिया मध्यरात्री तक जलता रहा |जब इसकी सुचना बनियों तक पहुची तो साईं बाबा के पास विपुल क्षमायाचना के लिए आये | साईं बाबा ने उन्हें क्षमा करदिया और कहा कि दुबारा झूठ मत बोलना | इस तरह साईं बाबा ने अपना चमत्कार दिखाते हुए पानी से दिया जला दिया |
नाम स्मरण
जय ऊँ, जय ऊँ, जय जय ऊँ, ऊँ, ऊँ, ऊँ, ऊँ, जय जय ऊँ| जय साईं, जय साईं, जय साईं ऊँ, ऊँ साईं, ऊँ साईं, ऊँ साईं|
बारिश रोकना
एक बार राय बहादुर नाम का व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ साईं बाबा के दर्शन के लिए शिरडी आया | जैसे ही वो पति पत्नी बाबा के दर्शन करवापस जाने लगे ,मूसलाधार बारिश शुरु हो गयी | जोरो से बिजलिया कडकने लगी और तूफ़ान चलने लगा | साईं बाबा ने प्रार्थना की “हे अल्लाह , बारिश को रोक दो , मेरे बच्चे घर जा रहे है उन्हें शांति से घर जाने दो ” | उसके बाद बारिश बंद हो गयी और वो पति-पत्नी सकुशल घर पहुच गये |
वन्दना
यह सौंप दिया सारा जीवन, साईंनाथ तुम्हारे चरणों में| अब जीत तुम्हारे चरणों में, अब हार तुम्हारे चरणों में||
मैं जग में रहूं तो ऐसे रहूं, ज्यों जल में कमल का फूल रहे| मेरे अवगुण दोष समर्पित हों, हे नाथ तुम्हारे चरणो में|| अब सौंप दिया...
मेरा निश्चय है बस एक यही, इक बार तुम्हें मैं पा जाऊं| अर्पित कर दूं दुनियाभर का सब प्यार तुम्हारे चरणों में|| अब सौंप दिया...
जब-जब मानव का जन्म मिले, तब-तब चरणों का पुजारी बनूं| इस सेवक की एक-एक रग का हो तार तुम्हारे हाथ में|| अब सौंप दिया...
मुझमें तुमसें भेद यही, मैं नर हूं, तुम नारायण हो| मैं हूँ संसार के हाथों में, संसार तुम्हारे चरणों में|| अब सौंप दिया...
डूबती बच्ची को बचाना
एक बार बाबु नामक व्यक्ति की तीन साल की बच्ची कुंवे में गिर गयी और डूबने लगी | जब गाँव वाले कुए के पास दौड़े उन्होंने देखा बच्ची हवा में लटक रही थी जैसे किसी अदृश्य हाथ ने उसे पकड़ रखा हो और उसे उपर तक खीच लिए |साईं बाबा को वो बच्ची बहुत प्यारी थी जो अक्सर कहा करती थी “मै बाबा की बहन हु ” | इस घटना के बाद गाँव वालो ने कहा “ये सब बाबा की लीला है “| इसके अलावा इस चमत्कार को ओर कोई स्पष्टीकरण नही हुआ था |
आरती
आरती श्री साईं गुरुवर की | परमानन्द सदा सुरवर की ||
जा की कृपा विपुल सुखकारी | दुःख, शोक, संकट, भयहारी ||
शिरडी में अवतार रचाया | चमत्कार से तत्व दिखाया ||
कितने भक्त चरण पर आये | वे सुख शान्ति चिरंतन पाये ||
भाव धरै जो मन में जैसा | पावत अनुभव वो ही वैसा ||
गुरु की उदी लगावे तन को | समाधान लाभत उस मन को ||
साईं नाम सदा जो गावे | सो फल जग में शाश्वत पावे ||
गुरुवासर करि पूजा - सेवा | उस पर कृपा करत गुरुदेवा ||
राम, कृष्ण, हनुमान रूप में | दे दर्शन, जानत जो मन में ||
विविध धर्म के सेवक आते | दर्शन कर इच्छित फल पाते ||
जै बोलो साईं बाबा की | जो बोलो अवधूत गुरु की ||
'साईंदास' आरती को गावे | घर में बसि सुख, मंगल पावे ||
शिरडी साईं बाबा के अनमोल वचन ! Sai Baba Quotes in Hindi
मैं हर एक वस्तु में हूँ और उस वस्तु से परे भी. मैं सभी रिक्त स्थान को भरता हूँ.
Sai Baba साईं बाबा
सबका मालिक एक है.
Sai Baba साईं बाबा
मैं डगमगाता या हिलता नहीं हूँ.
Sai Baba साईं बाबा
यदि तुम मुझे अपने विचारों और उद्देश्य की एकमात्र वस्तु रखोगे, तो तुम सर्वोच्च लक्ष्य प्राप्त करोगे.
Sai Baba साईं बाबा
अपने गुरु में पूर्ण रूप से विश्वास करें. यही साधना है.
Sai Baba साईं बाबा
मैं अपने भक्त का गुलाम हूँ.
Sai Baba साईं बाबा
मेरे रहते डर कैसा?
Sai Baba साईं बाबा
मेरा काम तो आशीर्वाद देना है.
Sai Baba साईं बाबा
मैं तुम्हे अंत तक ले जाऊंगा.
Sai Baba साईं बाबा
सम्पूर्ण रूप से ईश्वर में समर्पित हो जाइये.
Sai Baba साईं बाबा
मैं निराकार हूँ और मैं सर्वत्र हूँ.
Sai Baba साईं बाबा
मेरी शरण में आइये और शांत रहिये. मैं बाकी सब कर दूंगा.
Sai Baba साईं बाबा
यदि कोई अपना पूरा समय मुझमें लगाता है और मेरी शरण में आता है तो उसे अपने शरीर या आत्मा के लिए कोई डर नहीं होना चाहिए.
Sai Baba साईं बाबा
यदि कोई सिर्फ मुझको देखता है और सिर्फ मेरी लीलाओं को सुनता है व खुद को सिर्फ मुझमें समर्पित करता है तो वह भगवान तक पंहुच जायेगा.
Sai Baba साईं बाबा
मैं अपने भक्तों का बुरा नहीं होने दूंगा.
Sai Baba साईं बाबा
अगर मेरा भक्त गिरने वाला होता है तो मैं अपने हाथो बढ़ा कर उसे सहारा देता हूँ.
Sai Baba साईं बाबा
हमारा कर्तव्य क्या है ? ठीक से व्यवहार करना. ये काफी है.
Sai Baba साईं बाबा
जो मुझे प्रेम करते हैं मेरी दृष्टि हमेशा उन पर रहती है.
Sai Baba साईं बाबा
तुम जो भी करते हो, तुम चाहे जहाँ भी हो, हमेशा इस बात को याद रखो: मुझे हमेशा इस बात का ज्ञान रहता है कि तुम क्या कर रहे हो.
Sai Baba साईं बाबा
मैं अपने लोगों के बारे में दिन रात सोचता हूँ. मैं बार-बार उनके नाम लेता हूँ.
Sai Baba साईं बाबा
आप जो कुछ भी देखते हैं उसका संग्रह मैं ही हूँ.
Sai Baba साईं बाबा
ग्यारह वचन
- जो शिरडी में आएगा| आपद दूर भगाएगा|
- चढ़े समाधि की सीढ़ी पर| पैर तले दुःख की पीढ़ी कर|
- त्याग शरीर चला जाऊँगा| भक्त हेतु दौड़ा आऊँगा|
- मन में रखना दृढ़ विश्वास| करे समाधि पूरी आस|
- मुझे सदा जीवित ही जानो| अनुभव करो सत्य पहचानो|
- मेरी शरण आ खाली जाये| हो तो कोई मुझे बताये|
- जैसा भाव रहा जिस जन का| वैसा रूप हुआ मेरे मन का|
- भार तुम्हारा मुझ पर होगा| वचन न मेरा झूठा होगा|
- आ सहायता लो भरपूर| जो माँगा व नहीं है दूर|
- मुझमें लीन वचन मन काया| उसका ऋण न कभी चुकाया|
- धन्य धन्य व भक्त अनन्य| मेरी शरण तज जिसे न अन्य|
प्रार्थना
साईं कृपा से व्रत कथा लिखवाई, भक्तों के हाथों में पहुंची| साईं गुरुवार व्रत करे जो कोई, उसका कल्याण तो हरदम होई|
घर बार सुख शांति होवे, साईं ध्यान करे जो सोवे| भोग लगावे निसदिन बाबा को जोई उसके घर में कमी न होई|
बाबा की प्रार्थना करिए, साईं मेरे दुःख को हरिए| शिरडी में बाबा की मूर्ति है प्यारी, भक्तों को लगे है न्यारी|
मेरे साईं मेरे बाबा, मेरा मन्दिर मेरा काबा| राम भी तुम शाम भी तुम हो, शिवजी का अवतार भी तुम हो|
हनुमान तुम ही हो साईं, तुम्ही ने थी लंका जलाई| कलियुग में तुम आए थे साईं, भक्तों का कल्याण हो जाई|
भक्तिभाव से पड़े कथा जो, उसकी इच्छा पूरी हो जाती| बाबा मेरे आओ साईं हमको दर्शन दिखलाओ साईं|
तुम बिन दिल नहीं लगता, आंसू का दरिया है निकलता| जब-जब देखें तेरी मूरत, तब-तब भीग जाए मेरी मूरत|
अंधन को आंखे देते, दीन दुखी के दुख हर लेते| तुम सा नहीं है कोई सहाई, जपते रहें हम साईं साईं|
नाम तुम्हारा मंगलकारी, भवसागर से भक्तों को तारी| बाबा मेरे अवगुण माफ कर देना, भक्ति मेरी को ही लेना|
बाबा हम पर दया करना, अपने चरणों में ही रखना| चरणों में तुम्हारे शीतल छाया, बचे रहेंगे नहीं पड़ेगी मंद छाया|
हमारी बुद्धि निर्मल करना, जग की भलाई हमसे करना| हमको साधन बना लो बाबा, दया कृपा क्षमा दो बाबा|
अज्ञानी हम बालक मंदबुद्धि, तेरी दया से हो मन की शुद्धि| पाप ना कोई हमसे होने पाए, दुःख कोई जीव ना पाए| हरपल भला हम करते आए, गुणगान हरपल तेरे गांए|
||दोहा||
साईं हम पर कृपा करो, बालक हैं अनजान| मंदबुद्धि हम जीव हैं, हमको लो आन संभाल||१||
व्रत आपका कर रहे, दो आशीष यह आन| विध्न पड़े न इसमें कोई, कृपा करो दीनदयाल||२||
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