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छठ व्रत कथा Vrat-katha Chhath
छठ व्रत भगवान सूर्यदेव को समर्पित एक विशेष पर्व है। भारत के कई हिस्सों में खासकर यूपी और बिहार में तो इसे महापर्व माना जाता है। शुद्धता, स्वच्छता और पवित्रता के साथ मनाया जाने वाला यह पर्व आदिकाल से मनाया जा रहा है। छठ व्रत में छठी माता की पूजा होती है और उनसे संतान की रक्षा का वर मांगा जाता है।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले छठ व्रत का वर्णन भविष्य पुराण में सूर्य षष्ठी के रूप में है। हालांकि लोक मान्यताओं के अनुसार सूर्य षष्ठी या छठ व्रत की शुरुआत रामायण काल से हुई थी। इस व्रत को सीता माता समेत द्वापर युग में द्रौपदी ने भी किया था।
कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। परंतु दोनों की कोई संतान न थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फल स्वरूप रानी गर्भवती हो गई।

नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ। संतान शोक में वह आत्म हत्या का मन बना लिया। परंतु जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं।
देवी ने राजा को कहा कि "मैं षष्टी देवी हूं"। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं। यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी।" देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया।
राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि -विधान से पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा।

छठ व्रत के संदर्भ में एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।

हरियाली तीज व्रत कथा Vrat-katha Hariyali Teej
हरियाली तीज श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखा जाता है। इस दिन निर्जला उपवास और शिव-पार्वती जी की पूजा का विधान है। मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान शिव और देवी पार्वती के पुनर्मिलन हुआ था। इसे छोटी तीज या श्रवण तीज के नाम से भी जाना जाता है।
माना जाता है कि इस कथा को भगवान शिव ने पार्वती जी को उनके पूर्व जन्म के बारे में याद दिलाने के लिए सुनाया था। कथा कुछ इस प्रकार है--
शिवजी कहते हैं: हे पार्वती।  बहुत समय पहले तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया  था। इस दौरान तुमने अन्न-जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किया था। मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तप किया। तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ थे. ऐसी स्थिति में नारदजी तुम्हारे घर पधारे।

जब तुम्हारे पिता ने उनसे आगमन का कारण पूछा तो नारदजी बोले – ‘हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहाँ आया हूँ। आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूँ।’ नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले- हे नारदजी। यदि स्वयं भगवान विष्णु मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं तो इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती। मैं इस विवाह के लिए तैयार हूं।"
शिवजी पार्वती जी से कहते हैं, "तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी, विष्णुजी के पास गए और यह शुभ समाचार सुनाया। लेकिन जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हें बहुत दुख हुआ। तुम मुझे यानि कैलाशपति शिव को मन से अपना पति मान चुकी थी।
तुमने अपने व्याकुल मन की बात अपनी सहेली को बताई। तुम्हारी सहेली से सुझाव दिया कि वह तुम्हें एक घनघोर वन में ले जाकर छुपा देगी और वहां रहकर तुम शिवजी को प्राप्त करने की साधना करना। इसके बाद तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। वह सोचने लगे कि यदि विष्णुजी बारात लेकर आ गए और तुम घर पर ना मिली तो क्या होगा। उन्होंने तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक करवा दिए लेकिन तुम ना मिली।

तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी। भाद्रपद तृतीय शुक्ल को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की। इसके बाद तुमने अपने पिता से कहा कि ‘पिताजी,  मैंने अपने जीवन का  लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है।  और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है। अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे।" पर्वत राज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गये। कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि – विधान के साथ हमारा विवाह किया।”

भगवान् शिव ने इसके बाद बताया कि – “हे पार्वती! भाद्रपद शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका। इस व्रत का महत्त्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मन वांछित फल देता हूं। भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा।

माँ दुर्गा के नौ रूपों की जानकारी maa durga many forms maa durgaमाँ दुर्गा अपने 9 दिनों के नवरात्रि महोत्सव में अपने 9 रूपों के लिए जानी जाती है और दुनिया भर में अपने भक्तो द्वारा पूजी जाती है। नौ दिन की अविधि शुकल पक्ष के दिन से नौवे दिन अश्विना तक हिंदू कैलेंडर के सबसे शुभ समय माना जाता है,और इसलिए दुर्गा पूजा के रूप में वर्ष की सबसे मशहूर समय माना जाता है। नौ रूप नौ दिन तक लगातार अलग अलग पूजे जाते है। हालाकि साल में चार बार नवरात्रि आते है | जाने कब कब आते है दुर्गा के नवरात्रि

देवी दुर्गा के नौ रूप कौन कौन से है ?

प्रथम् शैल-पुत्री च, द्वितियं ब्रह्मचारिणि
तृतियं चंद्रघंटेति च चतुर्थ कूषमाण्डा
पंचम् स्कन्दमातेती, षष्टं कात्यानी च
सप्तं कालरात्रेति, अष्टं महागौरी च
नवमं सिद्धिदात्री

शैलपुत्री ( पर्वत की बेटी )
वह पर्वत हिमालय की बेटी है और नौ दुर्गा में पहली रूप है । पिछले जन्म में वह राजा दक्ष की पुत्री थी। इस जन्म में उसका नाम सती-भवानी था और भगवान शिव की पत्नी । एक बार दक्षा ने भगवान शिव को आमंत्रित किए बिना एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था देवी सती वहा पहुँच गयी और तर्क करने लगी। उनके पिता ने उनके पति (भगवान शिव) का अपमान जारी रखा था ,सती भगवान् का अपमान सहन नहीं कर पाती और अपने आप को यज्ञ की आग में भस्म कर दी | दूसरे जन्म वह हिमालय की बेटी पार्वती- हेमावती के रूप में जन्म लेती है और भगवान शिव से विवाह करती है।

भ्रमाचारिणी (माँ दुर्गा का शांति पूर्ण रूप)
दूसरी उपस्तिथि नौ दुर्गा में माँ ब्रह्माचारिणी की है। " ब्रह्मा " शब्द उनके लिए लिया जाता है जो कठोर भक्ति करते है और अपने दिमाग और दिल को संतुलन में रख कर भगवान को खुश करते है । यहाँ ब्रह्मा का अर्थ है "तप" । माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्ति बहुत ही सुन्दर है। उनके दाहिने हाथ में गुलाब और बाएं हाथ में पवित्र पानी के बर्तन ( कमंडल ) है। वह पूर्ण उत्साह से भरी हुई है । उन्होंने तपस्या क्यों की उसपर एक कहानी है | 
पार्वती हिमवान की बेटी थी। एक दिन वह अपने दोस्तों के साथ खेल में व्यस्त थी नारद मुनि उनके पास आये और भविष्यवाणी की "तुम्हरी शादी एक नग्न भयानक भोलेनाथ से होगी और उन्होंने उसे सती की कहानी भी सुनाई। नारद मुनि ने उनसे यह भी कहा उन्हें भोलेनाथ के लिए कठोर तपस्या भी करनी पढ़ेगी। इसीलिए माँ पार्वती ने अपनी माँ मेनका से कहा की वह शम्भू (भोलेनाथ ) से ही शादी करेगी नहीं तोह वह अविवाहित रहेगी। यह बोलकर वह जंगल में तपस्या निरीक्षण करने के लिए चली गयी। इसीलिए उन्हें तपचारिणी ब्रह्मचारिणी कहा जाता है।

चंद्रघंटा ( माँ का गुस्से का रूप )
तीसरी शक्ति का नाम है चंद्रघंटा जिनके सर पर आधा चन्द्र (चाँद ) और बजती घंटी है। वह शेर पर बैठी संगर्ष के लिए तैयार रहती है। उनके माथे में एक आधा परिपत्र चाँद ( चंद्र ) है। वह आकर्षक और चमकदार है । वह ३ आँखों और दस हाथों में दस हतियार पकडे रहती है और उनका रंग गोल्डन है। वह हिम्मत की अभूतपूर्व छवि है। उनकी घंटी की भयानक ध्वनि सभी राक्षसों और प्रतिद्वंद्वियों को डरा देती है ।

कुष्मांडा ( माँ का ख़ुशी भरा रूप )
माँ के चौथे रूप का नाम है कुष्मांडा। " कु" मतलब थोड़ा "शं " मतलब गरम "अंडा " मतलब अंडा। यहाँ अंडा का मतलब है ब्रह्मांडीय अंडा । वह ब्रह्मांड की निर्माता के रूप में जानी जाती है जो उनके प्रकाश के फैलने से निर्माण होता है। वह सूर्य की तरह सभी दस दिशाओं में चमकती रहती है। उनके पास आठ हाथ है ,साथ प्रकार के हतियार उनके हाथ में चमकते रहते है। उनके दाहिने हाथ में माला होती है और वह शेर की सवारी करती है।

स्कंदमाता ( माँ के आशीर्वाद का रूप )
देवी दुर्गा का पांचवा रूप है " स्कंद माता ", हिमालय की पुत्री , उन्होंने भगवान शिव के साथ शादी कर ली थी । उनका एक बेटा था जिसका नाम "स्कन्दा " था स्कन्दा देवताओं की सेना का प्रमुख था । स्कंदमाता आग की देवी है। स्कन्दा उनकी गोद में बैठा रहता है। उनकी तीन आँख और चार हाथ है। वह सफ़ेद रंग की है। वह कमल पैर बैठी रहती है और उनके दोनों हाथों में कमल रहता है।
कात्यायनी ( माँ दुर्गा की बेटी जैसी )

माँ दुर्गा का छठा रूप है कात्यायनी। एक बार एक महान संत जिनका नाम कता था , जो अपने समय में बहुत प्रसिद्ध थे ,उन्होंने देवी माँ की कृपा प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक तपस्या करनी पढ़ी ,उन्होंने एक देवी के रूप में एक बेटी की आशा व्यक्त की थी। उनकी इच्छा के अनुसार माँ ने उनकी इच्छा को पूरा किया और माँ कात्यानी का जन्म कता के पास हुआ माँ दुर्गा के रूप में।

कालरात्रि ( माँ का भयंकर रूप )
माँ दुर्गा का सातवाँ रूप है कालरात्रि। वह काली रात की तरह है, उनके बाल बिखरे होते है, वह चमकीले भूषण पहनती है। उनकी तीन उज्जवल ऑंखें है ,हजारो आग की लपटे निकलती है जब वह सांस लेती है। वह शावा (मृत शरीर ) पे सावरी करती है,उनके दाहिने हाथ में उस्तरा तेज तलवार है। उनका निचला हाथ आशीर्वाद के लिए है। । जलती हुई मशाल ( मशाल ) उसके बाएं हाथ में है और उनके निचले बाएं हाथ में वह उनके भक्तों को निडर बनाती है। उन्हें "शुभकुमारी" भी कहा जाता है जिसका मतलब है जो हमेश अच्छा करती है।

महागौरी ( माँ पार्वती का रूप और पवित्रता का स्वरुप )
आठवीं दुर्गा " महा गौरी है।" वह एक शंख , चंद्रमा और जैस्मीन के रूप सी सफेद है, वह आठ साल की है,उनके गहने और वस्त्र सफ़ेद और साफ़ होते है। उनकी तीन आँखें है ,उनकी सवारी बैल है ,उनके चार हाथ है। उनके निचले बाय हाथ की मुद्रा निडर है ,ऊपर के बाएं हाथ में " त्रिशूल " है ,ऊपर के दाहिने हाथ डफ है और निचला दाहिना हाथ आशीर्वाद शैली में है।वह शांत और शांतिपूर्ण है और शांतिपूर्ण शैली में मौजूद है. यह कहा जाता है जब माँ गौरी का शरीर गन्दा हो गया था धुल के वजह से और पृत्वी भी गन्दी हो गयी थी जब भगवान शिव ने गंगा के जल से उसे साफ़ किया था। तब उनका शरीर बिजली की तरह उज्ज्वल बन गया.इसीलिए उन्हें महागौरी कहा जाता है । यह भी कहा जाता है जो भी महा गौरी की पूजा करता है उसके वर्तमान ,अतीत और भविष्य के पाप धुल जाते है।

सिद्धिदात्री (माँ का ज्ञानी रूप )
माँ का नौवा रूप है " सिद्धिदात्री " ,आठ सिद्धिः है ,जो है अनिमा ,महिमा ,गरिमा ,लघिमा ,प्राप्ति ,प्राकाम्य ,लिषित्वा और वशित्व। माँ शक्ति यह सभी सिद्धिः देती है। उनके पास कई अदबुध शक्तिया है ,यह कहा जाता है "देवीपुराण" में भगवान शिव को यह सब सिद्धिः मिली है महाशक्ति की पूजा करने से। उनकी कृतज्ञता के साथ शिव का आधा शरीर देवी का बन गया था और वह " अर्धनारीश्वर " के नाम से प्रसिद्ध हो गए। माँ सिद्धिदात्री की सवारी शेर है ,उनके चार हाथ है और वह प्रसन्न लगती है। दुर्गा का यह रूप सबसे अच्छा धार्मिक संपत्ति प्राप्त करने के लिए सभी देवताओं , ऋषियों मुनीस , सिद्ध , योगियों , संतों और श्रद्धालुओं के द्वारा पूजा जाता है।

देवी माँ दुर्गा की पूजा से सभी देवता खुश maa durga all god worshipped
सिर्फ आदि शक्ति दुर्गा माँ की पूजा अर्चना से ही खुश हो जाते है समस्त देवी देवता :

यह प्रसंग हम लाये है दुर्गा सप्तशती पाठ से जिसमे बताया गया है की तीनो लोको के कल्याण के लिए किस तरह देवी दुर्गा माँ का अवतरण हुआ है और क्यों देवी माँ दुर्गा की ही आराधना से सभी मुख्य देवी देवताओ का आशीष साधक को प्राप्त होता है |

देवताओ की वेदना पर त्रिदेव और देवताओ के तेज से भगवती का अवतार :
दुर्गा सप्तशती के दुसरे अध्याय से जब दानव राज महिषासुर ने अपने राक्षसी सेना के साथ देवताओ पर सैकड़ो साल चले युद्ध में विजय प्राप्त कर ली और स्वर्ग का राजाधिराज बन चूका था | सभी देवता स्वर्ग से निकाले जा चुके थे | वे सभी त्रिदेव (बह्रमा विष्णु और महेश) के पास जाकर अपने दुखद वेदना सुनाते है | पूरा वर्तांत सुनकर त्रिदेव बड़े क्रोधित होते है और उनके मुख मंडल से एक तेज निकलता है जो एक सुन्दर देवी में परिवर्तित हो जाता है | भगवान शिव के तेज से देवी का मुख , यमराज के तेज से सर के बाल , श्री विष्णु के तेज से बलशाली भुजाये , चंद्रमा के तेज से स्तन , धरती के तेज से नितम्ब , इंद्र के तेज से मध्य भाग , वायु से कान , संध्या के तेज से भोहै, कुबेर के तेज से नासिका , अग्नि के तेज से तीनो नेत्र |

देवताओ द्वारा शक्ति का संचार देवी दुर्गा में :
शिवजी ने देवी को अपना शूल , विष्णु से अपना चक्र , वरुण से अपना शंख , वायु ने धनुष और बाण , अग्नि ने शक्ति , बह्रमा ने कमण्डलु , इंद्र ने वज्र, हिमालय ने सवारी के लिए सिंह , कुबेर ने मधुपान , विश्वकर्मा में फरसा और ना मुरझाने वाले कमल भेट किये , और इस तरह सभी देवताओ ने माँ भगवती में अपनी अपनी शक्तिया प्रदान की | 
इन सभी देवताओ के तेज से देवी दुर्गा में रूप के साथ साथ शारीरिक और मानसिक शक्ति का भी संचार होता है | देवता ऐसी महाशक्ति महामाया को देखकर पूरी तरह आशावान हो जाते है की महिषासुर का काल अब निकट है और देवताओ का फिर से स्वर्ग पर राज होगा | 
माँ दुर्गा ने महिषासुर और उसकी सम्पूर्ण सेना का वध करके देवताओ को फिर से स्वर्ग दिला दिया | माँ के जय जयकार तीनो लोको में हुई | 

तब से जो भी व्यक्ति सच्चे मन से माँ दुर्गा की आराधना करता है उसे सभी देवताओ का आशीष मिलता है | माँ दुर्गा के नव रूप की पूजा के लिए नवरात्रि त्यौहार मनाया जाता है | घर घर में कलश स्थापना की जाती है और रात्रि में माँ दुर्गा का जागरण किया जाता है |

नवरात्रि क्या है और महत्व maa durga navratri festivalमाँ दुर्गा की महिमा और नवरात्रि त्यौहार
इस जगत में माँ की महिमा अपरम्पार है , माँ के प्यार की ,त्याग की कोई तुलना नहीं की जा सकती और जब इस अनमोल रूप में दैविक शक्ति का वाश हो जाये ममता के साथ साथ आशीष स्नेह प्राप्त करके मनुष्य का जीवन सार्थक हो जाता है | अत: हिन्दू धर्म में सभी देवी माँ अपने भक्तो के लिए करुणामई और सुखो का संचार करने वाली है |

माँ की महिमा का गुणगान करने का पर्व है नवरात्रे :
आदिशक्ति दुर्गा की पूजा, आराधना, साधना और उनमे समर्पण का पर्व नवरात्रे कहलाता है जिसमे माँ दुर्गा के 9 रूप का 9 दिन तक गुणगान और भक्ति की जाती है | 
पुराणों में मान्यता है की सबसे पहले भगवान श्री राम ने लंका विजय के ठीक १० दिन पूर्व इन शारदीय नवरात्रों में माँ भगवती की पूजा अर्चना की थी तभी से यह सनातन धर्म का मुख्य पर्व बन चूका है | इन नवरात्रों को आदि शक्ति को समर्पण करते हुए जो भी भक्त इनमे साधना करता है वह दसो महाविद्याओं की प्राप्ति कर सकता है | माँ उसका पग पग पर कल्याण करती है | भगवती के आशीष से कर्म , ज्ञान और भक्ति के पथ पर आनंद की प्राप्ति करता है | इनकी कृपा और आराधना से मनुष्यों को स्वर्ग और अपुनरावर्ती मोक्ष प्रदान होता है | रात्रि में माँ दुर्गा का जगराता या जागरण से अम्बिका को रिझाया जाता है |
चैत्र माह 2017 के नवरात्रि
चैत्र माह में आने वाले माँ दुर्गा के नवरात्रि को वसंत नवरात्रि भी कहते है | इस साल 2017 में यह 28 March से 5 April तक के नो दिन है | भगवान श्री राम का जन्मोत्सव ४ अप्रैल ( मंगलवार ) को है | नवरात्रि के घट स्थापना के साथ हिन्दू नव वर्ष की शुरुआत होती है | हिन्दू नव वर्ष के शुरू के नो दिन माँ दुर्गा की भक्ति में लगाये जाते है |

नवरात्रि में कलश या घट स्थापना और पूजन navratri kalash sthapnaपावन पर्व नवरात्रो में दुर्गा माँ के नव रूपों की पूजा नौ दिनों तक चलती हैं| नवरात्र के आरंभ में प्रतिपदा तिथि को उत्तम मुहर्त में कलश या घट की स्थापना की जाती है। कलश को भगवान गणेश का रूप माना जाता है जो की किसी भी पूजा में सबसे पहले पूजनीय है इसलिए सर्वप्रथम घट रूप में गणेश जी को बैठाया जाता है |

कलश स्थापना और पूजन के लिए महत्त्वपूर्ण वस्तुएं
  • मिट्टी का पात्र और जौ के ११ या २१ दाने
  • शुद्ध साफ की हुई मिट्टी जिसमे पत्थर नहीं हो
  • शुद्ध जल से भरा हुआ मिट्टी , सोना, चांदी, तांबा या पीतल का कलश
  • मोली (लाल सूत्र)
  • अशोक या आम के 5 पत्ते
  • कलश को ढकने के लिए मिट्टी का ढक्कन
  • साबुत चावल
  • एक पानी वाला नारियल
  • पूजा में काम आने वाली सुपारी
  • कलश में रखने के लिए सिक्के
  • लाल कपड़ा या चुनरी
  • मिठाई
  • लाल गुलाब के फूलो की माला

नवरात्र कलश स्थापना की विधि
महर्षि वेद व्यास से द्वारा भविष्य पुराण में बताया गया है की कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा स्थल को अच्छे से शुद्ध किया जाना चाहिए। उसके उपरान्त एक लकड़ी का पाटे पर लाल कपडा बिछाकर उसपर थोड़े चावल गणेश भगवान को याद करते हुए रख देने चाहिए | फिर जिस कलश को स्थापित करना है उसमे मिट्टी भर के और पानी डाल कर उसमे जौ बो देना चाहिए | इसी कलश पर रोली से स्वास्तिक और ॐ बनाकर कलश के मुख पर मोली से रक्षा सूत्र बांध दे | कलश में सुपारी, सिक्का डालकर आम या अशोक के पत्ते रख दे और फिर कलश के मुख को ढक्कन से ढक दे। ढक्कन को चावल से भर दे। पास में ही एक नारियल जिसे लाल मैया की चुनरी से लपेटकर रक्षा सूत्र से बांध देना चाहिए। इस नारियल को कलश के ढक्कन रखे और सभी देवी देवताओं का आवाहन करे । अंत में दीपक जलाकर कलश की पूजा करे । अंत में कलश पर फूल और मिठाइयां चढ़ा दे | अब हर दिन नवरात्रों में इस कलश की पूजा करे |

विशेष ध्यान देने योग्य बात :
जो कलश आप स्थापित कर रहे है वह मिट्टी, तांबा, पीतल , सोना ,या चांदी का होना चाहिए। भूल से भी लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग नहीं करे ।

नवरात्रि में क्या करे क्या ना करे maa durga navratri what to doकैसे और किसने शुरू किये नवरात्रे :
माँ भगवती की 9 दिनों के नवरात्रों में पूजा सनातन काल से चला आ रहा है | सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका में रावण पर विजय प्राप्त की। तब से ही असत्य पर सत्य की जीत और अधर्म पर, धर्म की जीत का त्यौहार दशहरा मनाया जाने लगा।
नवरात्रि के प्रत्येक दिन 9 अलग अलग माँ के रूपों की पूजा की जाती है | इस 9 दिनों में पवित्रता और शुद्धि का विशेष ध्यान रखा जाता है | इन नियमो का पालन और विधिपूर्वक की गयी पूजा से माँ दुर्गा की कृपा से साधनाएं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। घर में सकारात्मक उर्जा का संचार होता है और नकारात्मक उर्जा ख़त्म होती है |
नवरात्र में क्या करें -
  • जितना हो सके लाल रंग के आसन पुष्प वस्त्र का प्रयोग करे क्योकि लाल रंग माँ को सर्वोपरी है |
  • सुबह और शाम मां के मंदिर में या अपने घर के मंदिर में दीपक प्रज्जवलित करें। संभव हो तो वहीं बैठकर मां का पाठ करें दुर्गा सप्तसती और दुर्गा चालीसा पढ़े ।
  • हर दिन माँ की आरती का थाल सजा कर आरती करे ।
  • मां को हर दिन पुष्प माला चढाएं।
  • नौ दिन तन और मन से उपवास रखें।
  • अष्टमी-नवमीं पर विधि विधान से कंजक पूजन करें और उनसे आशीर्वाद जरूर लें।
  • घर पर आई किसी भी कन्या को खाली हाथ विदा न करें।
  • नवरात्र काल में माँ दुर्गा के नाम की ज्योति अवश्य जलाए। अखण्ड ज्योत जला सकते है तो उतम है। अन्यथा सुबह शाम ज्योत अवश्य जलाए।
  • ब्रमचर्य व्रत का पालन करें। संभव हो तो जमीन पर शयन करें ।
  • नवरात्र काल में नव कन्याओं को अन्तिम नवरात्र में घर बुलाकर भोजन अवश्य कराए। नवरात्रि में नव कन्याओ का पूजन करे और आवभगत करे ।
नवरात्रि में कौनसे काम ना करें
जहां तक संभव हो नौ दिन उपवास करें। अगर संभव न हो तो लहसुन-प्याज का सेवन न करें। यह तामसिक भोजन की श्रेणी में आता है।

कैंची का प्रयोग जहां तक हो सके कम से कम करें। दाढी, नाखून व बाल काटना नौ दिन तक बंद रखें।
निंदा, चुगली, लोभ असत्य त्याग कर हर समय मां का गुनगाण करते रहें।
मां के मंदिर में अन्न वाला भोग प्रसाद अर्पित न करे ।

करवा चौथ व्रत कथा Vrat-katha Karva Chauth
करवा चौथ के दिन व्रत कथा पढ़ना अनिवार्य माना गया है। करवा चौथ की कई कथाएं है लेकिन सबका मूल एक ही है। करवा चौथ का व्रत अक्टूबर को रखा जाएगा। करवा चौथ की एक प्रचलित कथा (Karwa Chauth Katha) निम्न है:

महिलाओं के अखंड सौभाग्य का प्रतीक करवा चौथ व्रत की कथा (Karwa Chautha Vrat Katha) कुछ इस प्रकार है- एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी।

साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।

साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया। 

साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया।

इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया।

कहते हैं इस प्रकार यदि कोई मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक चतुर्थी का व्रत को पूर्ण करता है, तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है। 

कैलाश पर्वत पर छुपा है ये सबसे बड़ा रहस्य ,जब पहली बार कैमरा मैन ने वहा पहुँच बताई पूरी सच्चाई…kalash mansarovar lake story कैलास पर्वत हिन्दुओं का एक पवित्र स्थान है। पुरानी कथाओं अनुसार के यहां भगवान शिव और ब्रह्मा आदि देवगण, मरीच आदि ऋषि एवं रावण, भस्मासुर आदि तप किया था। कहा जाता है पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे।

इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ लोगों का कहना है कि आदि शंकराचार्य ने इसी के आसपास कहीं अपना शरीर त्याग किया था।कैलाश पर्वत और मानसरोवर को धरती का केंद्र माना जाता है। यह हिमालय के केंद्र में स्थित है। मानसरोवर वह पवित्र जगह है, जिसे शिव भगवान का धाम माना जाता है। ऐसा माना जाता है मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान शिव साक्षात वास माना जाता है।

चारों और महान नदियों से कैलाश पर्वत घिरा हुआ है सिंध, ब्रह्मपुत्र, सतलज और कर्णाली या घाघरा तथा दो सरोवर इसके आधार हैं पहला मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकर सूर्य के सामान है तथा राक्षस झील जो दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार चन्द्र के सामान है। अब इसी कैलाश मानसरोवर को लेकर एक चौंकानें वाली खबर आ रही है जब कौलाश कैलाश पर्वत पर पहली बार पहुंचा कैमरा, सामने आया था एक सच ….

भगवान शिव के  कैलाश पर्वत की कुछ फोटोज सोशल मीडिया पर इन दिनों वायरल हो रहीं हैं। वीडियो में कहा जा रहा है कि महादेव और पार्वती कैलाश पर घूम रहे हैं।इसी फोटो में यह दावा किया जा रहा है कि गूगल अर्थ से कैलाश पर्वत को देखने पर भगवान शिव की परछाई नज़र आ रही है। इन फोटोज को फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप पर कई बार शेयर किया जा चुका है।

2015 ये सभी फोटोज में एक यूट्यूब यूजर ने अपलोड की थी। लेकिन कुछ समय से ये सोशल मीडिया पर वायरल हो रहीं हैं। इन फोटोज को में कैलाश पर्वत पर दिखने वाली परछाई को अलग-अलग एंगल से दिखाया गया है, जिसमें भगवान शिव के चेहरे की आकृति बनती दिख रही है। यूट्यूब पर इसे जहां 11 हजार से ज्यादा बार शेयर किया जा चुका है, वहीं फेसबुक पर 2 हजार से ज्यादा बार लोग शेयर और लाइक कर चुके हैं। 

तिब्बति बोनपाओं अनुसार कैलाश में जो नौमंजिला स्वस्तिक देखते हैं व डेमचौक और दोरजे फांगमो का निवास है। बौद्ध भगवान बुद्ध तथा मणिद्मा का निवास मानते हैं।तिब्बतियों की मान्यता है कि वहां के एक संत कवि ने वर्षों गुफा में रहकर तपस्या की थीं।

कैलाश पर स्थित बुद्ध भगवान के अलौकिक रूप ‘डेमचौक’ बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पूजनीय है। वह बुद्ध के इस रूप को ‘धर्मपाल’ की संज्ञा भी देते हैं। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इस स्थान पर आकर उन्हें निर्वाण की प्राप्ति होती है।

जैनियों की मान्यता है कि आदिनाथ ऋषभदेव का यह निर्वाण स्थल ‘अष्टपद’ है। कहते हैं ऋषभदेव ने आठ पग में कैलाश की यात्रा की थी।

 फोटो की सच्चाई क्या है …

हम आपको बता दें कि इस तरह की आकृति बादलों के शेड और पहाड़ों के आकार-प्रकार के कारण बन जाया करती हैं। कभी-कभी आसमान में घुमड़ रहे बादलों में भी कुछ आकृतियां दिखाई देती हैं। अक्सर लोग इन फोटोज को संबंधित शेड का ज़िक्र करते हुए सोशल मीडिया पर शेयर कर देते हैं। धार्मिक शेड वाले पोस्ट अक्सर वायरल हो जाया करते हैं।

हिन्दू धर्म के की मान्यता अनुसार है कि कैलाश पर्वत मेरू पर्वत है जो ब्राह्मंड की धूरी है और यह भगवान शंकर का प्रमुख निवास स्थान है। यहां देवी सती के शरीर का दांया हाथ गिरा था। इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है।

जिनके पास होती हैं ये 10 चीजें, उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता राहु...rahu planet 10 favorite thingsराहु ग्रह की गिनती पाप ग्रहों में की जाती है, जिसकी छाया पड़ने मात्र से ही व्यक्ति की पूरी जिंदगी लगभग बर्बाद हो जाती है। वैसे राहु अगर किसी पर मेहरबान हो जाए तो वो व्यक्ति रंक से राजा तक बन जाता है। 
लोग अधिकतर देवी देवताओं पूजा में उनकी पसंद और नापसंद का खास ख्याल रखते है, जिससे किसी भी कारण से देवी देवता नाराज न हो, लेकिन क्या आप राहु ग्रह की पसंदीदा चीजे जानते हैं, जिससे उनका प्रकोप कम होता है।
राहु ग्रह का पसंदीदा अन्न गेहूं है और पसंदीदा वस्‍त्र कंबल है। इन चीजों से राहु ग्रह का प्रभाव काम होता है।
राहु के प्रकोप को कम करने के लिए दान में तेल का दान करें। राहु का दान में तेल काफी पसंद है।
अभ्रक और नीलवस्‍त्र राहु ग्रह की प्रिय वस्तुओं में से एक है। जबकि इनको गोमेद रत्न काफी पसंद है।
राहु का पसंदीदा रंग काला, पसंदीदा धातु लौहा, आहुति में तिल और प्रिय दिशा नैऋत्य है।






















































नारियल से जुड़ा 15 मिनट का ये उपाय, कर देता है सबके सपने पूरे...use these tips for fulfill your wish according to vastu shastraहर इंसान अपनी इच्छाओं और मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए कठिन से कठिन परिश्रम करता है। वह अपनी इन इच्छाओं को पूरा करने के लिए दिन-रात सपना देखता है। लेकिन जब उसके सपने पूरे नहीं होते तो वह निराश हो जाता है और हर तरफ अपनी नजर दौड़ाता है कोई दूसरा उपाय खोजता है। वास्तुशास्त्र ने सपनों को पूरा करने के लिए कुछ उपाय बताए गएे है।

एक जटाओं वाला नारियल, थोड़ा सिंदूर और तिल का तेल लें। सिंदूर को तिल के तेल में मिलाकर उससे पूरा नारियल रंग दें। 

इसके बाद मां अंबे से अपनी इस मनोकामना को पूर्ण करने की प्रार्थना करें और साथ ही साथ ‘ॐ ईं ह्रीं कं ह्रीं ईं ॐ’ का उच्चारण 15 मिनट तक इतनी धीमी आवाज में करें कि कोई और सुन ना पाए।

इसी नारियल के साथ लगातार 7 दिनों तक इस मंत्र का जाप करें। और सातवें दिन इस नारियल को किसी नदी या बहते हुए पानी में डाल दें।

परिवार से बाहर की किसी कन्या को मिठाई का दान करें और संभव हो तो थोड़ा पैसा का दान दें।

जानिए किसने की थी केदारनाथ में सबसे पहले पूजा , नारायण से जुड़ा है रहस्य...kedarnath temple lord vishnu had to austerity and pray lord shiva
बारह ज्योति‌र्लिंगों में से एक केदारनाथ हिन्दू धर्म का प्रमुख तीर्थ स्‍थल है। जिसके बारे पूरे विश्वभर में लोग जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि केदारनाथ प्रकट कैसे हुआ। उत्तराखंड में  स्थित केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ जाते हुण्‍ मार्ग में आता है, जो समुद्र तल से 3584 मी. ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर को किसने बनाया, किसने वहां पर सबसे पहले पूजा की।


केदारनाथ उन 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख है, जो स्वयं नारयण विष्‍णु की पूजा आराधना के बाद प्रकट हुआ। वैसे तो रामेश्वरम को पहला माना जाता है, जो भगवान राम ने शिवजी की पूजा अर्चना करके स्‍थापित किया। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग विष्‍णु के अवतार नर नारयण द्वारा तप और आराधना से प्रकट और स्‍थापित हुए हैं। 

माना जाता है कि द्वापर युग में कृष्‍ण और अर्जुन बने नर -नारायण के बाद इंद्र ने ही केदारेश्वर की पूजा की। हालांकि मौजूदा मंदिर 8वीं सदीं में गुरु शंकराचार्य ने बनवाया था। मंदिर के गर्भगृह में अर्धा के पास चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तंभ है, जहां से होकर प्रदक्षिणा होती है
स्कंद पुराण और शिव पुराण में भी इस मंदिर का वर्णन किया गया है। ठंडे ग्लेशियर और ऊंची चोटियों से घिरे केदारनाथ मंदिर को सर्दियों के दौरान बंद की  दिया जाता है और अधिदेवता ऊखीमठ ले जाते हैं। जहां पांच-छह माह वहीं पर उनकी पूजा होती है।
शिवपुराण में कोटिरूद्रसंहिता के अनुसार विष्‍णु के अवतार धर्मपुत्र नर नारायण हिमालय के बद्रिकाश्रम में पार्थिव लिंग के पूजन के समय विराजमान रहते हैं। उनकी तपस्या के प्रभाव से इन्द्रासन हिलने लगा, जिसके घबराकर इंद्र ने अप्सराओं को भेजा।

इंद्र की सारी कोशिश विफल रही। जिसके कुछ समय बाद महादेव ने प्रकट होकर नर नारयण को वर दिया। नर नारायण की तपस्या और प्रार्थना के बाद केदारेश्वर महादेव के नाम से शिव यहां सदा के लिए प्रतिष्ठित हो गए। 

भगवान श्रीकृष्ण के पैरों में थे ये 10 चिन्ह, जिनमें होते हैं चमक जाता है उनका भाग्य ....these 10 sign make you fortunateभगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म और कर्म का जो ज्ञान दिया था, वो गीता के रूप में आज भी हम सभी के लिए उपयोगी है। यदि आज भी हम में से कोई रास्ता भटक जाए तो गीता के उपदेश हमें सही राह दिखा सकते हैं। 

वैसे सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश ही नहीं उनका पूरा जीवन ही प्रेरणादायक है। फिर वो उनके बालपन की लीलाएं हो या फिर बुद्धि के दम पर दुनिया को बचाने की कवायद। यदि आपने कृष्ण के बारे में बहुत अधिक पढ़ा या सुना होगा तो आपने यह भी सुना होगा कि उनके शरीर पर कई तरह के चिन्ह थे। 

क्या आप जानते हैं कि इनमें से कुछ हम मनुष्यों के शरीर पर भी होते हैं। हालांकि ये चिन्ह बहुत कम लोगों के शरीर पर होते हैं। इन सभी चिन्हों के अर्थ भी अलग-अलग होते हैं। यह आपके भाग्य के बारे में भी बहुत कुछ कहते हैं। 

तो चलिए हम आपको बताते हैं, क्या है इन चिन्हों का मतलब। 

आधा चाँद 
भगवान कृष्ण के तलवे पर आधे चाँद का चिन्ह था। यही चिन्ह भगवान शिव के मस्तक पर भी होता है। यदि आपके शरीर पर भी यह चिन्ह है तो आपका करियर बहुत ही सुनहरा होता है।  

स्वस्तिक
पैर पर स्वस्तिक साइन वाले लोगों पर धन की जमकर वर्षा होती है। साथ ही इनकी आर्थिक स्थिति हमेशा ही बेहतर रहती है। 

कमल का फूल
पैरों पर कमल का चिन्ह होना भी धनवान होने का प्रतीक होता है। ऐसे लोगों की खास बात यह होती है कि ये जरूरतमंदों की बहुत मदद करते हैं। 

त्रिभुज 
पैर में ट्रायंगल होने का मतलब है कि आपको आपकी जिंदगी में बहुत से मजेदार लोग मिलेंगे। इसका यह भी मतलब है कि आप जल्द ही अमीर होने वाले हैं। इस साइन वाले लोग बहुत आकर्षित और प्रभावी भी होते हैं। 

चक्र 
कृष्ण के हाथों में सुदर्शन चक्र की तरह ही उनके पैरों में भी चक्र का निशान था। जिन लोगों के पैरों में चक्र का चिन्ह होता हो वो बहुत ज्यादा यात्रा करते हैं, कई देशों में घूम आते हैं। विदेश में भी बस जाते हैं। इस तरह के लोग दूसरों की बहुत मदद भी करते हैं। 

कलश 
जिनके पैर पर कलश का चिन्ह बना होता है, वो धार्मिक किस्म के होते हैं। जीवन में बहुत कुछ अच्छा करते हैं। ऐसे लोगों की आस-पास वाले बहुत इज्जत भी करते हैं।

मछली 
कृष्ण की हथेली और पैर दोनों पर भी मछली का चिन्ह बना हुआ है। मछली को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। जिन लोगों के शरीर का मछली का चिन्ह होता है, उन्हें अपने जीवन बहुत अधिक प्रतिष्ठा मिलती है। 

शंख 
शंख तो यूँ भी पवित्र और पूजनीय ही माना जाता है। कृष्ण के तलवे पर बना यह सौभाग्यकारी शंख सफलता और समृद्धि का संकेत होता है। 

धनुष-बाण 
जिनके पैर पर तीर-कमान का निशान होता है, उन्हें जीवन में बहुत संघर्ष करना होता है। लेकिन वो हमेशा इन मुश्किलों से योद्धा की तरह बाहर निकल जाते हैं। यदि इनका बहुत ज्यादा बुरा वक्त चल रहा है तो इसका मतलब हुआ कि वो जल्द ही कुछ बहुत बड़ा करने वाले हैं।

अंकुश 
यह निशान तलवे पर हैं तो इसका मतलब हुआ कि वह व्यक्ति मैनेजमेंट के मामले में गजब होता है। ऐसे लोग जल्द ही अन्य लोगों को प्रभावित कर देते हैं। तो बताइए कैसी लगी आपको यह स्टोरी। अपने दोस्तों के साथ भी इसे शेयर कीजिएगा।

काशी विश्वनाथ मंदिर से झुड़ी ये अद्भूत सच्चाई, जो नही जानता अभी तक कोई भी हिन्दु…kashi vishwnath mandir story
काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यह मंदिर पिछले कई हजारों वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्‍वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्‍ट स्‍थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्‍वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्‍वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं।

कहा जाता है कही पर सन्त एकनाथजीने वारकरी सम्प्रदायका महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पुरा किया और काशिनरेश तथा विद्वतजनोद्वारा उस ग्रन्थ कि हाथी पर से शोभायात्रा खुब धुमधामसे निकाली गयी।महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है।

काशी को भगवान शिव भगवान की सबसे प्रिय नगरी कहा जाता है। इसके बारें में कई पुराणों और ग्रंथों में भी किया गया हैं। काशी में ही भगवान शिव का प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग, काशी विश्वनाथ स्तिथ है। यहां वाम रूप में स्थापित बाबा विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के साथ विराजते हैं। यह अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है। आइए जानते है काशी विश्वनाथ मंदिर से जुडी रोचक और अनसुनी बातें।

भारत में यहां इस जगह पर समाई थी सीता ,जहां आज भी दिखता है ये अद्भुत चमत्कार mata sitaहम भगवान राम के बारें रामायण अनुसार इतना जानते है की भगवान राम लक्षमण, सीता में को 14 वर्ष का वनवास हुआ था और वह तीनों रावण के वध के बाद अयोध्या वापस आये थे।लेकिन ऐसी बहुत सी कहानी है रामायण के बारें में जो नही जानता कोई भी..

कथा अनुसार भगवान श्रीराम  को अयोध्या का राजपाठ मिलने की घोषणा हो चुकी थी और पूरे नगर में हर्षोल्लास का माहौल था। लेकिन भगवान राम की सौतेली माता कैकेयी ने उन्हें राजपाठ नहीं बल्कि चौदह वर्ष के वनवास के लिए भेज दिया। वनवास

श्रीराम के प्रिय भाई लक्ष्मण और उनकी पत्नी, माता सीता भी उनके साथ वनवास के लिए गईं।

जब वह वनवास के सिए गये थे  इस दौरान उन्होनें कई लोगों का उद्धार किया और इसी यात्रा के दौरान भगवान राम द्वारा कई चमत्कार हुए, बहुत से लोगों की हर परेशानी में उनका साथ देकर उनकी मदद भी की ती हनुमान और उनकी वानर सेना से भी श्रीराम की मुलाकत इन्हें चौदहर वर्षों के दौरान ही हुई।

तभी इसी दौरान उनहोनें एक बहुत बड़ी पीड़ा भी सही थी  क्योंकि  लांका के रावण उनकी पत्नी सीता को कैद का अपहरण करने का दुस्साहस किया था, उसका वध भी इसी दौरान किया।

चौदह वर्ष श्रीराम  के वनवास के बाद चौदह वर्ष धरती और अन्य लोगों के लिए तो वरदान साबित हुए, लेकिन माता सीता के लिए ये वर्ष अपने पति के इंतजार में बीते और  इन्हीं वर्षों के चलते उन्हें हमेशा के लिए अपने पति का वियोग बर्दाश्त करना पड़ा।

वे पवित्रता की मूर्त थीं लेकिन फिर भी उनपर अंगुलियां उठीं।रावण की लंका माता सीता बहुत समय तक रावण की लंका में कैद रही थीं।वे अपने पति के सम्मान को बनाए रखना चाहती थीं और इसके लिए उन्होंने अपना सबकुछ छोड़ना भी ज्यादा नहीं समझा।

 श्रीराम  चाहते थे अयेध्या में उनका सम्मान उनकी प्रजा के बीच बना रहे इसके लिए उन्होंने अयोध्या का महल छोड़ दिया और वन में जाकर वाल्मिकी आश्राम में रहने लगीं। वे गर्भवती थीं और इसी अवस्था में उन्होंने अपना घर छोड़ा था। अश्वमेध यज्ञ कुछ सालों बाद श्रीराम ने एक अश्वमेध यज्ञ किया, इस यज्ञ के दौरान श्रीराम की मुलाकात अपने जुड़वा पुत्रों लव-कुश से हुआ।

जब वह पहली बार अपनी अपने बेटों से मिली तो वह उनको पहचान ना पाए.. दोनों में बहस होने के कारण  युद्ध  छिड़ गया औत तभी युद्ध की खबर मिलते ही माता सीता वहां पहुंचीं और उन्होंने अपने पुत्रों की पहचान उनके पिता से करवाई।

जब श्रीराम को पता चला कि वे लव-कुश उनके पुत्र हैं, तो वे उन्हें और सीता को लेकर महल वापस आ गए।

सीता को भी उनका अपने प्रति व्यवहार सही नहीं लगा।श्रीराम अपनी पत्नी सीता को लाने को लेकर आश्वस्त नहीं थे,भूमि देवी आहत होकर सीता ने भूमि देवी से प्रार्थना की कि वह उन्हें अपने भीतर समाहित कर लें।

तभी  धरती मां ने उनकी प्रार्थना सुनी और उन्हें स्वीकार कर लिया। संत रविदास नगर जिस स्थान पर सीता ने भूमि में प्रवेश किया था आज उस स्थान को सीता समाहित स्थल के नाम से जाना जाता है, जो उत्तर प्रदेश के संत रविदास नगर में गंगा के किनारे स्थित है। शक्ति स्वरूपा इस मंदिर में आज भी शक्ति स्वरूपा माता सीता की अराधना की जाती है

कभी न करें भगवान गणेश के इस अंग के दर्शन, हो जाएंगे दरिद्रकहते हैं कि किसी कार्य को शुरू करने से पहले श्री गणेश का नाम लेना चाहिए। हर किसी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश का पूजन किया जाता है। गणेश जी को एकदंत और चतुर्बाहु भी कहा जाता है। उनके मुख का दर्शन करना अत्यंत मंगलमय माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं उनका एक अंग ऐसा भी है जिसके दर्शन करने से दरिद्रा आती है।
हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक भगवान गणपति की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए। मान्यता है की उनकी पीठ में दरिद्रता का निवास होता है, इसलिए पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए। कई बार भक्तों को अनजाने में पीठ के दर्शन भी हो जाते हैं तो ऐसे में फिर से भगवान गणेश के मुख के दर्शन कर लेना चाहिए, जिससे पीठ के दर्शन का अशुभ प्रभाव खत्म हो जाता है।
भगवान गणेश की पूजा के समय इस बातों का भी ध्यान रखें

- एक घर में तीन गणपति की पूजा न करें।

- घर के मुख्य द्वार पर गणेशजी की तस्वीर लगाने से वास्तुदोष खत्म होता है।

- घर या कार्यालय में श्रीगणेश की प्रतिमा या तस्वीर लगाते समय यह ध्यान रखें कि भगवान का चेहरा दक्षिण-पश्चिम दिशा में न हो।

बुधवार व्रत कथा (Budhvar Vrat Katha in Hindi)
बुधवार व्रत कथा vrat katha budhvar

बुध ग्रह की शांति और सर्व-सुखों की इच्छा रखने वाले स्त्री-पुरुषों को बुधवार का व्रत अवश्य करना चाहिए। कई जगह बुधवार के दिन गणेश जी के पूजा की जाती है। हालांकि बुधवार की व्रत कथा पूर्णत: भगवान बुध पर आधारित है। 
एक समय की बात है एक साहूकार अपनी पत्नी को विदा कराने के लिए अपने ससुराल गया। कुछ दिन वहां रहने के उपरांत उसने सास-ससुर से अपनी पत्नी को विदा करने के लिए कहा किंतु सास-ससुर तथा अन्य संबंधियों ने कहा कि "बेटा आज बुधवार है। बुधवार को किसी भी शुभ कार्य के लिए यात्रा नहीं करते।" लेकिन वह नहीं माना और हठ करके बुधवार के दिन ही पत्नी को विदा करवाकर अपने नगर को चल पड़ा। राह में उसकी पत्नी को प्यास लगी, उसने पति से पीने के लिए पानी मांगा। साहूकार लोटा लेकर गाड़ी से उतरकर जल लेने चला गया। जब वह जल लेकर वापस आया तो वह बुरी तरह हैरान हो उठा, क्योंकि उसकी पत्नी के पास उसकी ही शक्ल-सूरत का एक दूसरा व्यक्ति बैठा था। 
पत्नी भी अपने पति को देखकर हैरान रह गई। वह दोनों में कोई अंतर नहीं कर पाई। साहूकार ने पास बैठे शख्स से पूछा कि तुम कौन हो और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठे हो? उसकी बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा- अरे भाई, यह मेरी पत्नी है। मैं अपनी पत्नी को ससुराल से विदा करा कर लाया हूं, लेकिन तुम कौन हो जो मुझसे ऐसा प्रश्न कर रहे हो? दोनों आपस में झगड़ने लगे। तभी राज्य के सिपाही आए और उन्होंने साहूकार को पकड़ लिया और स्त्री से पूछा कि तुम्हारा असली पति कौन है? उसकी पत्नी चुप रही क्योंकि दोनों को देखकर वह खुद हैरान थी कि वह किसे अपना पति कहे? साहूकार ईश्वर से प्रार्थना करते हुए बोला "हे भगवान, यह क्या लीला है?"
तभी आकाशवाणी हुई कि मूर्ख आज बुधवार के दिन तुझे शुभ कार्य के लिए गमन नहीं करना चाहिए था। तूने हठ में किसी की बात नहीं मानी। यह सब भगवान बुधदेव के प्रकोप से हो रहा है।
साहूकार ने भगवान बुधदेव से प्रार्थना की और अपनी गलती के लिए क्षमा याचना की। तब मनुष्य के रूप में आए बुध देवता अंतर्ध्यान हो गए। वह अपनी स्त्री को घर ले आया। इसके पश्चात पति-पत्नी नियमपूर्वक बुधवार व्रत करने लगे। जो व्यक्ति इस कथा को कहता या सुनता है उसको बुधवार के दिन यात्रा करने का कोई दोष नहीं लगता और उसे सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।

वास्तु शास्त्र के हिसाब के जानिए कहां और कौन सी तस्वीर लगाने से मिलेगा लाभ Vastu tips can be useful for you
वैसे तो भगवान की तस्वीर कहीं भी लगाओ। वो हर जगह मौजूद हैं। मगर हां। बात यदि वास्तु शास्त्र के अनुसार की जाए तो हर तस्वीर के लिए एक दिशा निर्धारित होती है। अगर आप घर और मंदिर में भगवान शिव की तस्वीर लगाना चाहते हैं तो आपको जानना जरूरी है कि आपको तस्वीर कहां और कैसे लगाना जरूरी है। 

इतना ही नहीं यह जानना भी जरूरी है कि भगवान शिव की कैसी तस्वीर लगानी चाहिए। आज इस स्टोरी के जरिए हम आपको बता रहें हैं कि कहां और कैसी तस्वीर लगाएँ भगवान शिव की 

क्रोध में ना हो भगवान
यह भी ध्यान रखें कि भगवान शिव की ऐसी तस्वीर ना लगाएँ जिसमें भगवान शिव क्रोध मुद्रा में हों। यह विनाश का परिचायक है।

ऐसी तस्वीर लगाएँ
भगवान शिव की तस्वीर लगाते समय ध्यान रखें कि जो तस्वीर आप लगा रहे हैं उस तस्वीर में भोलेनाथ ध्यान मुद्रा में बैठे हों। यह तस्वीर एकाग्रता को बढ़ाने में कारगर साबित होगी।

ऐसी ना हो तस्वीर
ऐसी फोटो लगाने से बचें जिसमें भगवान शिव खड़े हों। कारण कि भोलेनाथ ज्यादातर ध्यानमग्न ही रहते हैं। वो खड़े तभी होते हैं जब वो क्रोध में होते हैं या फिर किसी उद्देश्य के लिए खड़े होते हैं।

कैलाश पर्वत
उत्तर दिशा मेंं है कैलाश पर्वत। भगवान शिव का निवास स्थान है कैलाश पर्वत। 

ताकि लोग देख सकें
कोशिश करें कि तस्वीर घर में या दुकान में उत्तर दिशा में ऐसी जगह लगाएँ जहां आने वाले लोग तस्वीर को देख सकें।

शुभ होती है ऐसी तस्वीर
नंदी के ऊपर बैठे भगवान शंकर की फोटो भी शुभ मानी जाती है, इसलिए कोशिश करें कि घर या दुकान में भगवान शिव की ऐसी फोटो लगाए जिसमें वो नंदी के ऊपर बैठे हों।

फैमिली वाली फोटो होती है शुभ
सबसे पहले तो जब आप तस्वीर लाए तो यह ध्यान रखें कि जिस तस्वीर में भगवान शिव मां पार्वती, बेटे गणेश और कार्तिक के साथ हो यानी पूरे परिवार के साथ हो वह तस्वीर शुभ मानी जाती है।

साफ सुथरी रहे तस्वीर
ख्याल रहे कि जहां भगवान शिव की फोटो लगी हो वहां साफ-सफाई करते रहें। ध्यान रहे कि शिव की तस्वीर के ऊपर धूल न जम पाए और न दीवार गंदी हो।

उत्तर दिशा की ओर मुंह
भगवान शिव की तस्वीर उत्तर दिशा में लगाना चाहिए।  

दुकान में लगाएं तस्वीर
दुकान में अगर उत्तर दिशा में भगवान शिव की तस्वीर लगाएं तो इससे व्यापार में फायदा मिलता है।

दरअसल इस दकियानूसी सोच की एक वजह महिलाएँ ख़ुद भी हैं। वो कभी इस मुद्दे पर खुल कर बात नहीं करना चाहती बल्कि वो मासिक धर्म, सेक्स जैसे मामलों पर बात करने से कतराती हैं। जिसकी वजह से पौराणिक मान्यताओं और रीति रिवाजों को उनके ऊपर थोप दिया जाता है।
महिलाओं में होने वाला मासिक धर्म या पीरियड्स भी ऐसी ही एक सोच का उदाहरण है। मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को समाज से ऐसे अलग कर दिया जाता है जैसे वो कोई अछूत हों। यक़ीनन पुराने समय में और आज के समय में बहुत बदलाव आया है। अब लोग पहले की तुलना में महिलाओं के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करते लेकिन अभी भी कई लोग ऐसे हैं जो पीरियड्स के नाम पर महिलाओं को दकियानूसी रिवाजों में बांधने की कोशिश करते हैं।
इंद्र देव की कहानी 
एक बार 'गुरु बृहस्पति' इंद्र देव से बहुत नाराज़ हो गए थे। जिसका फायदा उठाकर असुरों ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया। इसी वजह से इंद्र देव को अपनी गद्दी छोड़ भागना पड़ा था। असुरों से खुद को बचाते हुए जब वो सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा जी के पास पहुँचकर उनसे मदद माँगने लगे तब ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया...

सृष्टि रचनाकार ब्रह्मा ने उन्हें बताया कि इंद्र को एक ब्रह्म ज्ञानी की सेवा करनी चाहिए।यदि वह प्रसन्न हो गए तो उन्हें उनकी गद्दी वापस मिल जाएगी। ब्रह्माजी के कहे अनुसार इंद्रदेव ज्ञानी की सेवा में लग गए। वे इस बात से अनजान थे कि उस ज्ञानी की माता असुर थी जिसकी वजह से असुरों को लेकर उस ज्ञानी के मन में अधिक लगाव था।

असुरों के लिए अधिक लगाव रखने वाले ज्ञानी, इंद्रदेव द्वारा दी गई हवन सामग्री देवताओं की बजाय असुरों को अर्पित करते थे। जिसका पता इंद्रदेव को लग गया तो उन्होंने क्रोधित होकर उस ज्ञानी की हत्या कर डाली। एक गुरु की हत्या करना घोर पाप था, इसलिए उन पर ब्रह्म हत्या का पाप आ गया। जिससे बचने के लिए वे एक साल तक फूल की कली में छुपे रहे और भगवान विष्णु की तपस्या की।

तपस्या से खुश होकर भगवान विष्णु ने इंद्रदेव को बचा लिया और साथ ही उनपर लगे पाप की सजा से मुक्ति के लिए एक सुझाव भी दिया। इसके लिए इंद्रदेव को पेड़, भूमि, जल और स्त्री में अपना थोड़ा-थोड़ा पाप बाँटना था, साथ ही उन्हें एक वरदान भी देना था।

सबसे पहले पेड़ ने उस पाप का एक चौथाई हिस्सा ले लिया, जिसके बदले में इंद्र ने उन्हें वरदान दे दिया। पेड़ चाहे तो स्वयं ही अपने आप को जीवित कर सकता है।

इसके बाद जल को पाप का हिस्सा देने के बदले इंद्रदेव ने उसे अन्य वस्तुओं को पवित्र करने की शक्ति प्रदान की। इसी वजह से हिन्दू धर्म में जल को पवित्र मानते हुए पूजा-पाठ में इस्तेमाल किया जाता है।    

तीसरा पाप इंद्र देव ने भूमि को दिया और इसके बदले यह वरदान दिया कि उस पर आई चोट हमेशा भर जाएगी। इसके बार आख़िरी बारी स्त्री की थी।

इस प्रकार स्त्री को भी पाप का एक हिस्सा मिला जिसके फलस्वरूप उन्हें हर महीने मासिक धर्म होता है। लेकिन इसके बदले इंद्र ने महिलाओं को ये वरदान भी दिया कि पुरुषों की तुलना में महिलाएँ काम का आनंद ज्यादा अच्छी तरह ले पाएँगी।

इसी वजह से महिलाओं को हर महीने ब्रह्म हत्या का पाप भोगना पड़ता है।

पुरुषों की तरह महिलाओं को भी उन्हीं नज़रों से देखा जाता है? शायद नहीं। क्योंकि हमारे समाज में आज भी ऐसी दकियानूसी सोच पनपती है जो किसी न किसी तरीके से महिलाओं को पीछे धकेलती है।

जब आप यह सवाल खुद से या किसी से पूछेंगे तो मौटे तौर पर आप जवाब पाएंगे कि महाभारत से पता चलता है कि जुआं-सट्टा बेकार है। कुछ कहेंगे कि उपहास नहीं उड़ाना चाहिए। कुछ कहेंगे कि राजपाट की लालसा बेकार है। कुछ कहेंगे कि गलत का साथ नहीं देना चाहिए। और भी कई तरह की बातें सुनने को मिलेगी जो कि ठीक भी हैं।

लेकिन इनके अलावा भी महाभारत जिंदगी का पाठ पढ़ाती है। कुछ सीख देती है। महाभारत का हर पात्र कुछ सिखाता है। भीष्म हो या कर्ण सबसे कुछ न कुछ तो सीखने को मिलता है। तो लीजिए पढ़िए ऐसी ही कुछ ज्ञान की बातें। वो भी सीधे महाभारत से।

कृष्ण से क्या सीखते हैं
आपके मीठे बोल आदमी की ताकत से भी ज्यादा पावरफुल होते हैं। कृष्ण से अच्छा कोई उदाहरण नहीं हो सकता इसलिए हमेशा मीठा बोलिए। कुंती से क्या सीख सकते हैं आप।

धर्मराज से क्या सीखें
धर्मराज युधिष्ठर से सीखने को मिलता है कि हमेशा सच बोलना बेकार नहीं होता। बस गलतियों से सीखते रहें। धर्मराज ने हमेशा धर्म के अनुकूल आचरण किया। सत्य बोला कई बार नुकसान भी हुआ लेकिन सीख लेते हुए वे आगे बढ़ते रहे।

कुंती से क्या सीख मिलती है
अगर आपसे कोई गलती हुई है तो उसे स्वीकारने की ताकत रखें, क्योंकि छिपाने से भविष्य में स्थिति और भी खराब होगी। कुन्ती ने अगर समय पर बता दिया होता कि कर्ण उनका पुत्र है तो बात कुछ और ही होती। 

कर्ण से क्या सीखते हैं
दयालु, विनम्र और उदार होना ही पर्याप्त नहीं है। अगर बुराई से भरे समाज में बने रहना है तो आपको पता होना चाहिए कि लोग क्या कर रहे हैं, दुनिया कैसे चल रही है।
कर्ण से एक चीज और सीखने को मिलती है कि अगर आपमे सीखने की लालसा है तो कुछ भी करके उसे सीख लें। भले इसके लिए आपको उंगली टेढ़ी करनी पडे़। कर्ण को जब द्रोणाचार्य ने धनुर्विद्या सिखाने से मना कर दिया तो कर्ण, परशुराम के पास गए। परशुराम, केवल ब्राम्हणों को धर्नवुद्या सिखाते थे। तब कर्ण ने उनसे झूठ बोला कि वो ब्राम्हण है।
अर्जुन से क्या सीखा
अगर आपके अंदर ताकत है तो आप राज करेंगे। यह बात मायने नहीं रखती कि आप लड़की हैं, लड़का हैं या कोई और। आपको याद है अर्जुन को कुछ समय बृहन्नला बनकर भी बिताना पड़ा था।

पाण्डवों से क्या सीख मिलती है
पाण्डवों से सीख मिलती है कि जिंदगी पर बाधाओं का असर मत पड़ने दो। आगे बढ़ते रहो। पाण्डवों ने मुसीबत झेली, लेकिन आगे बढ़ते रहे और आखिरी में जीते। धर्मराज युधिष्ठिर और कृष्ण से क्या सीख मिलती है।

भीष्म से क्या सीखें
भीष्म पितामह से आप सीख सकते हैं कि कभी भी ज्यादा लंबे समय के लिए यानी हमेशा के लिए वचन न लें। और ना किसी को दें, क्योंकि भविष्य पर आपका नियंत्रण नहीं है। कहीं ऐसा ना हो कि आपके वचन के कारण आपको पछताना पड़े।

भीम से क्या सीख सकते हैं
खूब खाओ, मेहनत करो और स्वस्थ्य रहो। तो बताइए। कैसी लगी आपको ये स्टोरी। अपने दोस्तों को भी बताइएगा। 

अभिमन्यु से क्या सीख मिलती है
अभिमन्यु से सीख मिलती है कि आधा ज्ञान खतरनाक होता है। अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदना तो जानते थे, लेकिन उससे बाहर निकलना नहीं जानते थे। यही कारण था कि परिणाम दुखद रहा।

शकुनी से क्या सीख मिलती है
एक बुरी आदत जिंदगी तबाह कर देती है। जैसे कौरवों की बुरी आदत थे शकुनी। हमारे लिए बुरी आदत, ड्रग, ड्रिंक और स्मोकिंग हो सकती है।

महाभारत से क्या सीखते हैं
दुनिया में हर व्यक्ति सफर कर रहा है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा क्योंकि कष्टों को टाला नहीं जा सकता। ज्यादा निगेटिव ना रहें।

Digitalindiagov.com

Satish Kumar

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